अच्छा, अब यहांसे चलना चाहिए, क्योंकि अब यहाँ पर नाहक ठहर कर देर करने की कोई जरूरत नहीं है। हां, इस मकान की निगरानी के लिये एक पुलिसमैन यहां पर जरूर छोड़ देना चाहिए। "पस, साहब बहादुर का हुकुम सुनकर एक कांस्टेबिल को उस मकान की निगरानी के लिये छोड़ दिया गया और तब तीनों कैदियों को अपने साथ लेकर शाम होते-होते हमलोग कानपुर लौट आए। लौट तो आए, पर पिछली रात को एक दूसरी ख़ौफ़नाक ख़बर मिली!"
यह सुनकर हाकिम में पूछा,—"वह कौन सी ख़बर थी?"
इस पर कोतवाल साहब कहने लगे,—"जी, अर्ज करता हूं। मेरी यह हमेशे की आदत है कि मैं रात को चाहे कभी सोऊं, पर पिछेली रात को उठ बैठता हूँ। पस, मैं तीन बजे रात को उठ और फारिग-वारिग होकर कुछ लिखने-पढ़ने बैठा ही था कि इतने ही में रसूलपुर गांव के थाने के दो चौकीदार घबराए हुए कोतवाली में आए। उनके आने की ख़बर मुझे तुरत दी गई और फौरन वे दोनों मेरे रु-ब-रू पहुंचाए गए। जब वे दोनों मेरे सामने आकर करीने से बैठ गए, तब मैंने उनसे पूछा,—"तुम दोनों 'रसूलपुर' गांव के चौकीदार हो?" इस पर उन दोनों ने"हां"—कहा। तब फिर मैंने पूछा,—"तुम दोनों का नाम क्या है और किस गरज से यहां आए हो?" यह सुनकर उन दोनों में से एक ने कहा,—बन्देनेवाज़, मेरा नाम रामदयाल है और मेरे इस जोड़ीदार का नाम कादिरबख़्श। मेरे उस गांव (रसूलपुर) के थानेदार अब्दुल्ला खां और चौकीदार हींगन खां का आज रात को ख़ून होगया है! यह जानते ही हम-दोनों चौकीदार अपने गांव से रवाने हुए और हुज़ूर की ख़िदमत में उस मामले की रिपोर्ट लिखाने आए हैं।"
बस, यहां तक पढ़कर कोतवाल साहब जरो ठहरे ही थे कि झट मजिष्टर साहब ने उनसे यों कहा,—"उन दोनों चौकीदारों