के निशान वहाँ कैसे बने? क्या यह उन सभों के मरने के बाद भी इस घर में मौजूद थी! एक बात हुजूर से और अरज कर देनी है, वह यह कि अब उस कोठरी और उसके बाहर हमलोगों के भी पैर के दाग पड़ गए हैं। क्योंकि हमलोग धढ़धड़ाते हुए इस कोठरी में घुस गए थे, इसलिये वहां पर फैले हुए खून में हमलोगों के पैर डूब गए थे। सो, उस कोठरी में और उसके बाहर भी हमलोगों के पैर के निशान अब पड़ गए हैं! पीछे हमलोगों ने बाहर आँगन में आकर अपने अपने पैर धो डाले हैं। बस, गरीब परवर! यही तो वहांका हाल है, जिसकी रिपोर्ट लिखाने हमलोग हुजूर की खिदमत में हाजिर हुए हैं। यहां पर इतना और भी अर्ज कर देना मुनासिब होगा कि इस बार्दात की रिपोर्ट लिखाने जब हमलोग वहांसे चलने लगे थे, तब पहिले हिरवा की मां 'हुलसिया' के घर गए थे। पर वहां जाकर हुलसिया को हमलोगों में बुखार में बेसुध पाया और हिरवा की जोरू को घर पर मौजूद न पाया। बस, बन्देनेवाज! हमलोगों का यही बयान है, जो ठीक ठीक लिखाया गया है। इसके अलावे, इस खून या डकैती के मामले में हमलोग और कुछ भी नहीं जानते।
यहां लों पढ़ कर कोतवालसाहब ने हाकिम से यों कहा,-"बन्देनेवाज! उन तीनों हरवाहों के दिये हुए इस इजहार को कलमबन्द कर और इस पर उन तीनों के अंगूठे की छाप लेकर उन तीनों को तो बेड़ी हथकड़ी भर दी गई और पुलिस के अफसर सुपरिन्टेन्डेन्ट साहब की 'टेलीफोन' से इस बात की खबर दीगई। इसके जवाब में उन्होंने यों कहा कि, 'दौलतपुर चलने का काफ़ी इन्तजाम करो, मैं भी अभी आता हूँ।'
"गरज, आध घन्टे के अन्दर सुपरिन्टेण्डेन्ट साहब आ गए और इनके हुक्म बमूजिय आठ कांस्टेबिलों के पहरे में फलगू, ठोढ़ा और घोंघा को साथ लेकर हम लोग गाड़ियों पर सवार