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सात खून।



यह सुन कर फलगू कहने लगा,—"हुजूर,मालिक के मकान पर आकर हमलोगों ने मकान का सदर दरवाजा खुला पाया! यह देख कर हमलोगों मे "कालू-कालू" और "दुलारी-दुलारी" कह कर कई आवाजें दी, पर जय उन दोनों में से कोई भी न बोला, तब हमलोग पड़ा ताज्जुब करते हुए मकान के अन्दर घुसे। भीतर जाकर हमलोगों ने क्या देखा कि, 'घर को सच कोठरियों के सारे दरवाजे खुले हुए हैं और मकान की सारी चीजें गायब हैं! यह देख कर हमलोग बड़े हकपकाए कि, ‘क्या इस घर में रात को डांका पड़ा, जो सब चीज-वस्त्र नदारत है! खैर, यों ही तीन-चार कोठरियों को देख कर हमलोग एक और कोठरी में घुसे और वहांकी लीला देख हर एक दम घबरा गए! तो उस कोठरी में हमलोगों में क्या देखा? यही कि उन्हीं तिवारी जी का परोसी हिरवानाऊ धरती में मरा हुआ पड़ा है!' यह अजीब तमाशा देख कर हमलोगों को काठ मार गया और देर तक हमलोग उसी कोठरी में खड़े-खड़े हिरवा के मुर्दे की ओर देखते रहे। इसके माद हमलोग उस कोठरी से बाहर निकल कर रसोई-घर में पहुंचे और वहां जो कुछ दिखलाई दिया, उससे हमसभी की मानो जान निकल गई! देर तक हम-तीनी, एक दूसरे को थाम्हें हुए उस बड़ी कोठरी की लीला देखते रहे। इसके बाद फिर आप ही आप हमलोग अपने आपे में आए और फिर सारा घर देख-भाल कर हुजूर की खिदमत में आ दाखिल हुए। तो, रसोई घर में हमलोगों मे क्या देखा कि, 'हमारे गांव के रहनेवाले 'धामा' और 'परसा' के तो सिर धड़ से अलग होकर एक मोर लुड़क रहे हैं और 'नब्बू' के कलेजे में एक तल्लार घूसेड़ी हुई है! फकल इतना ही नहीं,बरन एफ चौथा आदमी भी, जिसका नाम 'कालू' था और जो तिवारीजी के हम-चार हरबाहों में से एक था, एक ओर मरा हुआ पड़ा है! इस (कालू) के कम्धे में तल्वार का बड़ा गहरा घाव हो रहा है!' बस,गरीब पर घर! यह सब