पृष्ठ:खूनी औरत का सात ख़ून.djvu/१०१

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( ९७ )
सात खून।


कह-सुन-कर छुरवा दूंगा । मगर जो तुम यों हीला-हवाला करोगी, तो इन सासों खूनों का सारा इल जाम तुम्हारे ही सिर सढ़ा जायगा और तुम खून करने के जुर्म में फांसी पर लटकाई जागोगी।"

इसपर मैमे यों कहा,--"तो क्या आप मुझसे झूठ कहलवाना चाहते हैं ?

वे बोले,--'नहीं; झूठ तो तुम पहिलेही कह चुकी हो । इस लिये अब सच कहो और अपने कसूर को सीधी तरह कबूल कर लो।

मैं बोली,--"नहीं, साहब ! मैने अपने बयान में जो कुछ लिखवाया है, यही सा ही है । बस, उसके अलावे और मैं कुछ भी कहना नहीं चाहती।"

वे बोले,--"मैं देखता हूं कि तुम सीधी साह तरह पर आने वाली नहीं हो ! सुनो, यो, दुलारी! अगर तुम सीधी तरह इन सातों खूनों के करने की बात कबूल न करोगी, तो मैं तुम्हें बड़ी बड़ी तकलीफें दूंगा और तुम्हारी सारी मक्कारी भुला दूंगा। इसलिये अब तुम्हारी इसी में बेहतर है कि तुम मेरे कहने की मानो और । भली लड़की की तरह अपने कसूर को कबूल कर लो।"

मैं बोली,--'कोतवाल साहब ! आप मेरे पिता की उम्र से भी बड़े हैं और मैं समझती हूं कि आपको भी बाल बच्चे होंगे; इसलिये मेरी हाथ जोड़ कर आपसे बार बार यहा बिनती है कि आप अपनी सफेद डोढ़ी और मेरी विपत्ति का खयाल कर के जरा अपने खुदा से डरें और मुझे आफत की मारी पर नाहक मनमाना जुल्म करें। यह बात शायद आप जरूर समझते होंगे कि, "जहां आपके बाप, दादे और परदादे गए, वहीं एक दिन आगको भी जरूर ही जाना पड़ेगा, फिर चार दिन की जिन्दगी में पाए अपनी बेटी के समान मुझ दईमारी को इस तरह क्यों पीसना चाहते हैं ? क्या आपका यही धर्म है और क्या न्यायवती सरकार ने इसीलिये आप