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खूनी औरत का


भी अपने घर के सारे आराम को दूर रखकर इस जाड़े पाले में तुम्हारी भलाई के लिये यहां आए हैं। एक सप्ताह के लगभग हुआ होगा कि तुम्हारी विपत्ति का सारा हाल मुझे अपने मित्र भाई निहालसिंहजी डिपटी कलक्टर से मालूम हुआ और उन्होंने मुझे 'पायनियर' अखबार दिखलाया, जिसमें तुम्हारे मुकदमे का पूरा हाल लिखा हुआ था। उसी समय उन्होंने मुझे तुम्हारे बचाने के लिये बहुत कुछ कहा और अपने इन्हीं बूढ़े पिता को तार देकर प्रयाग बुलाया। बस, इनके आ जाने पर मैं यहां आया और तुम्हारे मुकदमे के कुल कागजात देखकर इन्हें तो यहीं छोड़ दिया और मैंने फिर इलाहाबाद वापस जाफर जज के फैसले के विरुद्ध हाईकोर्ट में अपील दायर कर दी। इसके बाद मैं फिर यहां वापस आ गया और भाई दयालसिंहजी से मिला। तबतक इन्होंने भी अपनी मुनासिब कार्रवाई कर डाली,—अर्थात तुम्हारे मुकद्दमे के कुल कागजात भलीभांति देख डाले और जासूसी मोहकमे के बड़े अफसर से मिलकर उनसे इस बात की इजाजत लेली कि, "इस मुकद्दमे की जांच मैं फिर से करूं और जबतक मेरी जांच का अखीर न हो ले, तबतक मुजरिम को आराम से रक्खा जाय।" बस, जासूसी मोहकमे के बड़े अफ़सर ने इनके खातिरखाह इन्हें इस मुकद्दमे की जांच करने का परवाना देदिया और उसे पाकर ये अपनी कार्रवाई करने लगे। इतने ही में मैं यहां आगया और इनसे मिला। फिर मजिष्ट्रेट से इजाजत लेकर आज हम-दोनों तुम्हारे पास आए हैं और इसलिये आए हैं कि तुम उन सातों खूनों के बारे में ठीक ठीक हाल हमलोगों के आगे बयान कर जाओ। बस, जच तुम्हारा बयान हमलोग सुन लेंगे, तब तुम्हारे मुकद्दमे में भरपूर कोशिश कर सकेंगे।"

मैं तो बारिस्टर साहब की इतनी लंबीचौड़ी वक्ता सुनकर सन्नाटे में आगई! मैने मन ही मन यह सोचा कि जप ये मुझ जैसी