जायगा। परन्तु चन्द्रमा की आकर्षण शक्ति इतनी कम है कि वहाँ से कोई चीज या राकेट डेढ मील फी सैकण्ड की गति से फेके जाने पर ही उसकी आकर्षण शक्ति की पहुँच से बाहर आ जायगा।"
"इसी कारण वहाँ मनुष्य को भी अपना भार बहुत कम प्रतीत होता है?" है न?"
"बेशक, वहाँ पर कूदना फादना बहुत सरल था। एक ही छंलाग में बीस-बाईस फुट कूदना साधारण बात थी।"
"चन्द्रमा से सूर्य और पृथ्वी कैसे दीखते थे?"
"आकाश तो काला दीखता ही था, सूरज वैसा दीखता था जैसा पृथ्वी से। पर पृथ्वी वहाँ से बहुत बड़ी दीखती थी।"
"आखिर कितनी बड़ी?"
"चन्द्रमा से कोई बारह गुनी, उसमे चमक भी बहुत तेज दिखाई देती थी।"
"इसका क्या कारण है?"
"इसका कारण यह था कि चन्द्रमा पर जो सूर्य का प्रकाश पड़ता है, उसका केवल ७ प्रतिशत चन्द्रमा के प्रकाश के रूप में हमे रात में पृथ्वी पर दिखाई देता है, पर पृथ्वी चन्द्रमा की अपेक्षा कही अधिक प्रकाश फेंक देती है, इस कारण चन्द्रमा पर रात में भी इतना प्रकाश रहता था कि मजे मे पढ़ा लिखा जा सकता था। तथा दिन की भॉति काम किया जा सकता था। लेकिन घाटियो में जहा प्रकाश नही पड़ता, गहरा अन्धकार था।"
"क्या वहाँ आकाश में तारे दीखते थे?"
"तारे दीखते थे परन्तु वातावरण न होने के कारण उनमे जगमगाहट न थी।"
"क्या वहाँ क्षितिज भी पृथ्वी की भाति दीखता था?"
"पृथ्वी की अपेक्षा बहुत निकट। पर सूर्योदय इतने धीरे-धीरे होता था कि एक घण्टा लग जाता था। सूर्यास्त के बाद एकदम अंधेरा हो जाता था, पृथ्वी की भाति सन्ध्या नहीं होती थी, पृथ्वी का प्रकाश पड़ने पर उजाला होता था।"