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क्रान्ति के बाद सैनिक प्रशासन को सब से बड़ी सफलता आर्थिक मोर्चे पर मिली जिसने उसे तत्काल लोकप्रिय बना दिया। अन्तर्राष्ट्रीय खुले बाजार मे डालर के बदले पाकिस्तान के ६.८३ रुपया मिल जाते थे जबकि पाकिस्तानी रुपए की अधिकृत दर ४.७६ थी। सैनिक प्रशासन के बाद पाकिस्तान के ५५५ रुपयो मे एक डालर मिलने लग गया। इस प्रकार पाकिस्तानी रुपए की कीमत मे २५ प्रतिशत की वृद्धि हो गई।

मार्शल-ला प्रशासन मे उपभोग्य वस्तुओ के मूल्य मे १० से ३० प्रतिशत तक की कमी हो गई। इससे कराची मे गत वर्ष जीवन यापन सूचक अग जो १८ प्रतिशत बढ गया था उसमे १० प्रतिशत कमी आ गई। तीस लाख मन खाद्यान्न या तो सरकार ने जप्त कर लिया या जमीदारो ने अपने स्टाक घोषित कर दिए। इससे खाद्यान्नो की कीमत मे स्थिरता आ गई। सोना तथा अन्य विलास सामग्री का तस्कर व्यापार लगभग समाप्त हो गया। बढिया कपडे के दाम भी गिर गए। कठोर प्रशासन से जनता में नागरिकता की भावना बढ गई। बसो की भीड-भाड, नगर की गन्दगी, खाद्यान्नों की मिलावट में सुधार हुआ। भ्रष्टाचार मे कमी हो गई। जनता की पुकार तुर्तफूर्त अधिकारियो तक पहुँचने लगी। प्रशासको ने कराची समुद्र तट से तीन करोड मूल्य का तस्कर सोना जप्त किया।

परन्तु देश की आर्थिक दुरवस्था ज्यो की त्यो थी। गत सितम्बर मे भूतपूर्व वित्तमन्त्री सैयद अमजद अली ने राष्ट्रीय एसेम्बली मे कहा था कि पाकिस्तान आर्थिक विनाश के कगार पर खडा है। उस समय पाकिस्तान की विदेशी मुद्रा का कोष ३० करोड रुपये के न्यूनतम स्तर तक पहुँच चुका था। कपडा, जूट और कपास के उत्पादन मे कोई वृद्धि नही हुई थी। भारत के साथ व्यापार कायम करने से पाकिस्तान की बहुत सी कठिनाइयां दूर हो सकती थी, परन्तु पाकिस्तानी रवैया इसके अनुकूल न था। पाकिस्तान का कहना था कि भारत और पाकिस्तान की अर्थ व्यवस्था एक दूसरे पर निर्भर नही। वैचारिक मतभेदो के कारण कम्युनिष्ट देशो से भी पाकिस्तान व्यापार सम्पर्क न बढा सका। पाकिस्तान ने बगदाद समझौते के रूप में अमरीका के