गिर गया। मैं बिल्कुल मूच्छित हो गया। तन बदन की मुझे सुध न रही। अन्तिम क्षण मैंने समझा---मै मर गया।।।
धूमकेतु की टक्कर
मैं नही जानता कि कब तक मेरी ऐसी ही दशा रही। पर जब मुझे होश हुआ तो मेरे कानो में प्रोफेसर की आवाज़ आ रही थी। वह निरन्तर मेरा नाम पुकार रहे थे--जोरोवस्की, जोरोवस्की, तुम बोलते क्यों नहीं। जोरोवस्की, बोलो, बोलो। मैंने सुना, कापती मन्द आवाज से मैंने कहा---"प्रोफेसर, मैं कहाँ हू?"
प्रोफेसर की आनन्द ध्वनि मैंने सुनी। वह कह रहे थे---जोरोवस्की, तुम बोल रहे हो? बोल सकते हो? क्या तुम मेरी आवाज सुन रहे हो?"
"सुन रहा हू प्रोफेसर, पर मैं कहाँ हूँ?"
"ओह, तो तुम जीवित हो, तुम पृथ्वी पर लौट रहे हो। जोरोवस्की लेकिन सावधान हो जाओ। "तुम एक धूमकेतु के आकर्षण में उड़े चले आ रहे हो।"
"क्या कहा, धूमकेतु के।"
मैं उठकर बैठ गया। शरीर में सख्त दर्द हो रहा था और बहुत कमज़ोरी मालूम हो रही थी। मैंने देखा---मेरे चारो ओर वही पदार्थ छिन्न-भिन्न सा पड़ा हुआ था। पर अब मैं उसकी गिरफ्त से बाहर था। मैं अपनी परिस्थिति का अभी अध्ययन ही कर रहा था कि प्रोफेसर की आवाज आई---वे कह रहे थे सावधान जोरोवस्की, सावधान, धूमकेतु तुम्हारे निकट आ रहा है। सम्भव है, वह तुम्हारे विमान से टकरा जाय, तुम विमान से कूद पड़ो। जोरोवस्की, साहस करो। अब तुम पृथ्वी के वायुमण्डल में हो।"
"यह धूमकेतु क्या बला थी?"
"धूमकेतु धूम-सदृश पदार्थ से बने हुए लाखो मील लम्बे चौड़े होते है, हमारे परिवार से विशेष सम्बन्ध नहीं रखते। ये प्राय सौर-परिवार के बाहर शून्य आकाश में इधर उधर भ्रमण करते रहते है। कभी-कभी जब कोई धूमकेतु स्वतन्त्र रूप से विचरण करता हुआ सूर्य के अभिजित नक्षत्र की ओर