यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।


पाकर वे सैनिक शासन के राष्ट्रपति बन जायेगे। इसलिए उन्होने बिना। विरोध सैनिक अधिकारियो का कहा मान लिया। इसके अतिरिक्त कोई चारा भी न था। उन्होने एक भारी भूल की कि सविधान खत्म करते ही मार्शलला की समाप्ति तथा राष्ट्रीय परिषद् के निर्माण की चर्चा शुरू करदी। जनरल' अयूब पूर्वी पाकिस्तान के दोरे पर थे। यह सुनते ही वे कराची दौडे और कहा मार्शल ला अभी लागू रहेगा। मिर्जा को राष्ट्रीय परिषद् का प्रस्ताव वापस लेना पड़ा और तब एक मन्त्रि मण्डल की स्थापना हुई जिसके प्रधान मन्त्री जनरल अयूब थे। इसके तीन दिन बाद ही जनरल मिर्जा को अपना बिस्तर बोरिया समेट कर भागना पडा।

जब जनरल मिर्जा को पदच्युत किया गया तब जनरल अयूब सशस्त्र सेनामो के सर्वोच्च सेनापति, प्रधान सेनापति, मार्शल-ला प्रशासक और प्रधान मन्त्री थे। पदच्युत किए जाने से कुछ घन्टे पूर्व जनरल मिर्जा ने जनरल अयूब से सशस्त्र सेनाप्रो के सर्वोच्च सेनापति का पद छोडने को कहा था, सविधान भग होने से प्रथम तक मिर्जा ही के पास यह पद था। पर जनरल अयूब इस बात को खूब समझते थे कि सेनाओ पर सीधा नियन्त्रण बिना रक्खे, केवल प्रधान मन्त्री का पद नहीं टिक सकेगा। बस उन्होने मिर्जा को पदच्युत कर दिया।

क्रान्ति की योजना सेना के कुछ उच्च अधिकारियो ने तैयार की थी। उनमे लेफ्टिनेन्ट जनरल आजम और शेख प्रमुख व्यक्ति थे जो इस समय मन्त्रिमण्डल में थे। तीन अन्य व्यक्तियो मे मेजर जनरल हमीद पेशावर मे एरिया कमाण्डर, मेजर जनरल देहिया खॉ आर्मी हैड क्वार्टरर्स रावलपिण्डी और विग्रेडियर पीरजादा थे।

फौजी प्रशासन की कठोरता तथा नए करो के भय से पाकिस्तानी पूजीपति नए उद्योगो मे अपनी पूंजी लगाने मे कतरा रहे थे। वहाँ की अस्थिर राजनीतिक स्थिति के कारण विदेशी व्यापारी भी वहाँ पूजी लगाने को तैयार न थे। यहाँ तक कि कुछ विदेशी पूंजीपति तो पाकिस्तानी उद्योगो से अपना रुपया ही समेट लेना चाह रहे थे।