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खग्रास

चुल्लू में लेना चाहा परन्तु वहाँ पानी तो था ही नहीं। वह तो केवल गैस का समुद्र था।

मैंने दो सिलेण्डर वह गैस भी भर ली। गैस यह बहुत भारी थी तथा हमारे वैज्ञानिक ज्ञान से सर्वथा ही भिन्न थी।"

"लेकिन वहाँ तुम्हे भूख प्यास थकान नींद कुछ भी अनुभव नहीं हो रही थी?"

"बिल्कुल नही। परन्तु मैं नियत समय पर विमान में आकर निश्चेष्ट पड़ रहा था। मैं नही कह सकता कि वह नींद कही जा सकती है या नहीं। परन्तु उस समय भी मेरा मस्तिष्क काम करता रहता था। जैसे मैं स्वप्न देख रहा होऊँ। रह रह कर एक प्रकार के हल्के धक्के मेरे यान को लग रहे थे जैसे हल्का सा भूचाल आया हो। भूख प्यास का तथा मल-मूत्र उत्सर्ग का कोई प्रश्न ही न था। वैज्ञानिक उपकरणो द्वारा हारमोन और उनके विटामिन्स मेरे शरीर को कवच द्वारा ही प्राप्त हो रहे थे। वायु में श्वास लेने की मुझे आवश्यकता ही न थी। सबसे बड़ी बात यह थी कि थकान जैसी किसी वस्तु का मुझे आभास ही नहीं हो रहा था। परन्तु मैं ठीक समय पर विश्राम करता और फिर खोज के लिए निकल पड़ता था। रेडियो और टेलीविजन सम्पर्क मास्को से कायम था। परन्तु सूचनाए अब कभी कभी स्पष्ट नहीं होती थी। ऐसा प्रतीत होता था जैसे खूब गहरे कुए से कोई बोल रहा है। शायद वहाँ मास्को में भी मेरी आवाज़ स्पष्ट नहीं सुनी जाती थी। वहाँ से संकेत पाकर बार बार मुझे दुहराना पड़ता था। प्रोफेसर अब मुझे वापस पृथ्वी पर लौटा लाने के लिए बहुत व्यग्र हो रहे थे। मैं अब यहाँ से कैसे लौटूगा, इसका हल न मेरे पास था, न उनके पास। सदा के वायु शून्य इस चन्द्रलोक में मैं कब तक इस तरह कृत्रिम रीति पर बिना आहार-विहार के जीवित रह सकता था। कभी-कभी यह उलझन मुझे भी परेशान कर देती थी।

चन्द्रलोक में तीन दिन

अकस्मात् ही मुझे अपने यान में एक हरकत मालूम हुई और वह चन्द्रलोक के धरातल से एकबारगी ही ऊँचा उठ गया। यान का कोई यन्त्र