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खग्रास

और प्रकाश तथा प्रभात मध्याह्न सन्ध्या वहाँ थी ही नहीं। केवल घड़ी की सुई मुझे समय का ज्ञान करा रही थी। मेरे विमान में बीस हजार मील तक की यात्रा का ईधन था। बीस हजार मील की यात्रा अब पूरी हो रही थी। अब मेरे लिए नए संकट की घड़ी उपस्थित थी जिसका हल हम पृथ्वी पर नहीं कर सके थे।"

"वह संकट कैसा?"

"यह कि जब ईंधन चुक जायगा, तब क्या होगा। अधिक से अधिक ईंधन हम जितना साथ रख सकते थे, रख लिया था। इस संकट काल के लिए, मेरे पास एटामिक एनर्जी ही थी। मैं ठीक नही समझ सकता था कि एटामिक एनर्जी के प्राथमिक धक्के को मेरा विमान सह भी सकेगा। अतः ज्यों ही ईधन समाप्त होने लगा और मैं एटामिक एनर्जी का बटन दबाना चाहता ही था कि अकस्मात् ही मुझे ऐसा प्रतीत हुआ कि किसी अज्ञात शक्ति ने मेरे विमान को वेग से दूसरी दिशा में उछाल दिया है। मैं भय से सिहर गया। मैंने सोचा, कही किसी नक्षत्र से मेरा विमान टकरा तो नहीं गया। परन्तु अभी तो नक्षत्र मण्डल हमसे दूर थे। मैंने सब यन्त्रो पर एक उड़ती नजर डाली। यन्त्र सब काम कर रहे थे। पर ज्यों ही मैंने गतिसूचक घड़ी की ओर देखा, मेरा रक्त ठण्डा हो गया।"

"क्या हुआ?"

"ईंधन बिल्कुल बन्द था और विमान का इजिन भी बन्द था, पर मेरा यान अब बदली हुई दिशा में बीस हजार मील प्रति घण्टा की भीषण गति से उड़ा चला जा रहा था। कुछ ही मिनटो में गतिमापक यन्त्र बेकाम हो गया। वह केवल २५ हजार मील प्रति घण्टा ही नाप सकता था। अब तो हमारी सारी ही पूर्व गणनाएँ सावधानी और कार्यक्रम व्यर्थ हो रहे थे। मेरा यान मेरे अधिकार और नियन्त्रण से परे था। परन्तु मास्को से मेरा सम्बन्ध स्थापित था। सघर्षहीन शून्य अन्तरिक्ष में मेरा विमान दुर्घर्ष अप्रतिहत गति से बहा जा रहा था। भयानक वेग से। परन्तु मुझे मानसिक घबराहट के अतिरिक्त कोई कष्ट न था।