"क्या तुम बिल्कुल स्वस्थ और ठीक होश हवास में थे और शून्याकाश में तुम्हे कुछ भी असुविधा न थी?"
"न, मेरी हालत ठीक वैसी ही थी जैसी माता के गर्भ मे शिशु की होती है। न तो अब मुझे श्वास प्रश्वास लेना पड़ता था क्योंकि वायु तो वहाँ थी ही नहीं। रक्षा कवच में सुरक्षित द्रव प्राणवायु थोड़ी थोड़ी गैस बनती जाती थी और शरीर के रोम कूप उसे चूसते जाते थे।"
"क्या तुम्हारे फेफड़े बिल्कुल काम नहीं कर रहे थे?"
"बिल्कुल नहीं। रक्त का अभिसरण भी बहुत धीमा था और शीतोष्ण का तो मुझे कुछ पता ही नहीं लगता था। पर मेरे स्नायु काम कर रहे थे और मेरा मस्तिष्क ठीक-ठीक सब परिस्थितियो की विवेचना कर रहा था।"
"लेकिन भोजन?"
"भूख-प्यास तथा मलमूत्र विसर्जन की मुझे आवश्यकता ही नहीं थी। शरीर में फालतू कोई पदार्थ जाता ही न था। तुमको तो ज्ञात ही है अन्तरिक्ष यात्रा से तीन दिन प्रथम ही मैंने भोजन त्याग दिया था।"
"हाँ, हा! तुम केवल एनर्जी फूड और विटामिन्स ले रहे थे।"
"हारमन्स भी मैंने लेना आरम्भ वही कर दिया था। सच पूछो तो यह बात मेरे लिए अत्यन्त लाभकारी प्रमाणित हुई।"
"तो तुमने इस यात्रा में भोजन किया ही नही?"
"न, केवल हारमोन ग्रन्थियो ही की प्रतिक्रिया से मुझे जीवन और शक्ति मिलती रही।
"यह तो बड़ी ही अजीब बात है। चिकित्सा शास्त्र भी शायद इसका अनुमोदन न करे।"
"कैसे करेगा। चिकित्सा शास्त्र के रचयिताओ को अन्तरिक्ष यात्रा थोड़ी ही करनी पड़ी है। बस, मेढक और खरगोशो को चीर फाड़ कर ही वे अपना निर्णय कर बैठे है।"