यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५२
खग्रास

"तुमने तो मुझे चिन्तित कर दिया।"

"चिन्ता की बात नहीं है। यदि मेरा जीवन इस यात्रा में समाप्त हो जाता तो भी मुझे सन्तोष था क्योंकि मैं अन्तरिक्ष और चन्द्रलोक की अत्यन्त महत्वपूर्ण सूचनाएँ केन्द्र को भेज चुका था।"

"क्या तुम बता सकते हो कि अन्तरिक्ष यात्रा की सबसे महत्वपूर्ण बात क्या है?"

"गुरुत्वाकर्षण।"

"किस दृष्टि से?"

"गति की दृष्टि से।"

"यह कैसे?"

"इस यात्रा में यह मेरा नितान्त नवीन और महत्वपूर्ण अनुभव रहा कि गति और गुरुत्वाकर्षण का प्राणी-शरीर पर गम्भीर प्रभाव पड़ता है।"

"यह तो मुझे भी मालूम है कि भू-उपग्रह अथवा अन्तरिक्ष विमान को अपने वृत्त पथ पर डालने के लिए गति वृद्धि का आश्रय लिया जाता है।"

"हॉ, परन्तु यह गति वृद्धि विमान में बैठे हुए प्राणी के शरीर के पैरो से सिर की ओर हो तो प्राणी शरीर का रक्त शरीर के निचले भाग की ओर आकर इकठ्ठा होने लगेगा और ज्यों ज्यों गति वृद्धि होगी, रक्त का यह निम्न संचय भी बढ़ता जायगा और इसका परिणाम यह होगा कि प्राणी के स्नायुमण्डल में अव्यवस्था उत्पन्न हो जायगी। और पहले वह बेहोश हो जायगा फिर उसी अवस्था में उसकी मृत्यु हो जायगी।"

"तब तो यह नितान्त आवश्यक है कि उन अन्तरिक्ष यानो तथा भू-उपग्रहो की गति की दिशा निश्चित रूप में प्राणी-शरीर के समानान्तर न रखकर लम्ब रूप में रखी जाय।"

"बेशक। परन्तु इतना ही यथेष्ट न होगा। हमें कवच में भी ऐसी व्यवस्था करनी आवश्यक है कि वह कवचधारी के शरीर-रक्त को एक स्थान पर एकत्र न होने से रोके।"

"तो तुमने यह व्यवस्था अपने कवच में कर रखी थी?"