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खग्रास

बढ़ने के साथ ही बढ़ती जाती है। और दबाव घटाने से घुलनशीलता कम हो जाती। वायु मण्डल के जिस दबाब में हम पृथ्वी पर रहते हैं, उसी के कारण हमारे रक्त में प्राणवायु, नाइट्रोजन, और कार्बन आक्साइड गैसे घुली रहती है।"

"किन्तु ऊपर के वायवीय स्तर में तो यह दबाव कम हो जाता होगा?"

"हॉ, भूग्रहो की ऊँचाई पर यह दबाव बहुत कम, नाममात्र को रह जाता है। भूमि के गुरुत्वाकर्षण के बाद तो कतई नही रहता।"

"तो इसकी क्या प्रतिक्रिया शरीर के रक्त पर पड़ती है?"

"उस अवस्था में ये गैसे रक्त में से निकलने लगती है।"

"ओफ, यह तो जीवन के लिए एकदम खतरनाक है।"

"इसमें क्या सन्देह है। रक्त में आवश्यक प्राणवायु विशेष दबाव पर ही घुलता है।"

"और यदि दबाव न रहे?"

"तो, उसमें प्राणवायु की प्राप्ति तो होती ही नहीं। रक्त में पहले ही से विद्यमान गैसे भी बाहर निकलने लगती है।"

"खैर, इस दबाब की कमी को तो कवच में वायु का दबाव रखकर पूरा कर लिया गया। पर जब अन्तरिक्ष में वायु हो ही नहीं तब?"

"तुम भूल गई। इसी मस्ले पर तो हमारी प्रौ०••••से तीन दिन तक बहस होती रही थी।"

"नही, भूली नही हू। उसी बहस का यह परिणाम हुआ था कि तुमने यथेष्ट मात्रा में द्रव प्राणवायु साथ रख ली थी।"

"खूब याद रखती हो तुम। इसमें बड़ा सुभीता रहा। एक लिटिर द्रव प्राणवायु के उड़ने से आठ सौ लिटर गैस प्राणवायु मुझे प्राप्त होती गई।"

"ओफ, ओ, यह तो बड़ी ही सुविधाजनक बात हुई।"

"परन्तु इस यात्रा के अनुभव से मुझे ज्ञात हुआ कि छोटी मोटी तथा अल्पकालीन यात्राओ के लिए तो खैर यह व्यवस्था सहायक है परन्तु