"बिल्कुल ठीक। और तुम्हे याद होगा कि वैज्ञानिको की उस सभा में मैंने इस मान्यता पर सन्देह किया था।"
"मुझे याद है। तुमने कहा था।"
"परन्तु हमारी इस यात्रा ने यह मान्यता सर्वथा निराधार प्रमाणित कर दी।"
"अच्छा? यह कैसे?"
"मैं शुरू से ही सब सुनाता हूँ। ज्यो ही राकेट छूटा, क्षण भर को मैं उसके भयंकर असह्य धक्के से बेहोश हो गया। परन्तु शीघ्र ही मैं होश में आ गया। पन्द्रह मिनट मेरे बड़े कष्ट से व्यतीत हुए। परन्तु अभी मैंने अपने नए आकाशीय कवच के यन्त्रो को चालू नही किया था। ज्यों ज्यों वायुमण्डल को अपनी दुर्घर्ष गति से हमारा राकेट चीरता जा रहा था उसके घर्षण से राकेट में असह्य उत्ताप बढता जा रहा था। इस भीषण उत्ताप से बचने के लिए प्रत्येक सम्भव वैज्ञानिक उपकरण मैंने प्रो० की सलाह से राकेट में रख लिए थे परन्तु मुझे पृथ्वी के वायुमण्डल के तीन सौ मील के चक्र को पार करने में तेरह मिनट लगे। इस काल का भीषण उत्ताप इतना बढ़ गया था कि यदि मुझे और एक मिनट वायुमण्डल में रहना पड़ता तो निश्चय ही हमारा राकेट जलभुनकर खाक हो गया होता।"
"और इसके बाद?"
"इसके बाद तो फिर मुझे कोई कष्ट न रहा। मेरे कवच में केवल यही व्यवस्था न थी कि यथेष्ठ प्राणावायु मुझे मिलती रहे, उसमे यह भी व्यवस्था थी कि वायु का दबाव भी उतना ही रहे जो पृथ्वी पर है।"
"वायु का दबाव उतना ही, जितना कि पृथ्वी पर है, रहना आवश्यक था?"
"बिल्कुल आवश्यक था। इसीलिए मैंने अपने कवच में उसका प्रबन्ध पूर्ण कर रखा था। तुम तो जानती ही हो कि वायु के दबाव को कायम रखने की आवश्यकता इसलिये है कि द्रव पदार्थों में गैसो की घुलनशीलता दबाव