देखा—कि गूढ पुरुष का शरीर धुएँ के समान हवा मे घुलता और गायब होता जा रहा है। देखते ही देखते वह एक धुँआ सा रह गया और फिर वह भी गायब हो गया। तिवारी ने विमूढ की भॉति प्रतिभा की कलाई जोर से पकड ली। उनके मुंह से चीख निकल गई। परन्तु प्रतिभा इस समय पत्थर की प्रतिमा बनी यन्त्र पर दृष्टि जडाए खड़ी थी जहाँ गूढ पुरुष सुदूर साइवेरिया मे सदेह प्रकट हो रहे थे—और सब वैज्ञानिक हर्ष से, उनका अभिनन्दन कर रहे थे।
तिवारी बड़ी देर तक जड़ बने खड़े रहे—फिर उन्होने मौन मुद्रा मे कहा—"तो पापा अभी जीवित है?"
"पापा जीवन मरण से परे है। वे विलय विद्या जानते है पर यह बात उन्होने अत्यत गोपनीय रखी थी।"
"तब तो प्रतिभा मै हर्षित हू, वे मुझे जो वरदान दे गए है मै उसके योग्य तो नही—पर चेष्टा करूँगा कि योग्य बनूं। तुम्हे कुछ कहना है—प्रतिभा?
प्रतिभा ने मुस्कराकर लज्जा से सिर नीचा कर लिया। तिवारी ने कहा—"समझ गया, मै अभी भैया और भावी को लेकर आता हूँ, वे ही हमे मंगल सूत्र में बाँधेगें। सब लोग भोजन भी यही करेगे।"
इतना कह कर तिवारी तेजी से चले गए।
समाहार
तिवारी ने व्यस्त भाव से आकर दिलीप कुमार से कहा—"जरा जल्दी करना होगा—भाई साहेब आपको और भाभी को भी।"
"मामला क्या है?"
"आप सबको अभी चलना है।"
"किन्तु कहाँ?"
"जरा उस बंगले तक।"
"क्यो? क्या बात है।"