"तो उस मित्रता से लाभ उठाने का यही उपयुक्त अवसर है ।" भूदेव ने कहा।
"किस प्रकार?"
"इस प्रकार कि अमेरिका और रूस दोनो ही यह प्रस्ताव स्वीकार करे कि भारत शिखर सम्मेलन का नेतृत्व करे।"
"कैसे?"
"इस प्रकार कि अमेरिका और रूस नेहरू से अनुरोध करे कि वह शिखर सम्मेलन बुलाएँ। श्री नेहरू इस कार्य के लिए इसलिए अधिक उपयुक्त पुरुष है।"
"तो श्री नेहरू सम्मेलन बुलाने की पहल करे, व इसकी जिम्मेदारी ले। यदि वे ऐसा करेगें तो उसे रूस व अमेरिका अस्वीकार न करेगा। इसके विपरीत कोई पूर्व व पश्चिम का अन्य नेता सम्मेलन बुलायेगा तो ऐसी सफलता की आशा नही है। क्योकि नेहरू उस भय के जाल को तोड सकते जो हमे घेरे हुए है।
“यही बात है। नेहरू का ससार मे वह सम्मान है जो दूसरे किसी व्यक्ति का नही है। वे शीतयुद्ध मे किसी ओर नही।"
"परन्तु इस काम मे उन्हे बडा दायित्व लेना होगा।"
"इममे क्या सन्देह है। पर हम समझते है कि इस काम मे वे समर्थ है। इस समय सन्देह व भय से उत्पन्न जिच को तोडना बहुत जरूरी है, और यह काम वही व्यक्ति कर सकता है जिस पर दोनो राष्ट्रो का विश्वास हो तथा जो मध्यस्थ बनने तथा पहल करने का दायित्व सम्हालने की क्षमता रखता हो।"
प्रोफेसर ने खडे होकर गम्भीरतापूर्वक कहा—"जिस देश मे नेहरू जैसे व्यक्ति प्रधानमन्त्री हो, और राष्ट्रपति डा° राजेन्द्रप्रसाद ऐसी विभूतियाँ जिस देश मे हो, उस देश के प्रति संसार भर के लोगो का रुख सम्मान और श्रद्धा का होना स्वाभाविक ही है।"