भूदेव ने शान्त मुद्रा से कहा—"एक तीसरी शक्ति और है जो विश्व की सबसे महान् शक्ति है, जो आज भी संसार का सतुलन बनाए है और भविष्य मे संसार का शक्ति-सतुलन उसी पर आधारित रहेगा।"
"वह तीसरी शक्ति कौनसी है?" प्रोफेसर ने अचकचा कर पूछा।
"भारत की शान्ति शक्ति। जो अणुशक्ति, उद्जन शक्ति तथा अन्तराष्ट्रीय प्रक्षेपणास्त्र शक्ति से भी अत्यधिक महान है।"
"आपने ठीक कहा।" प्रोफेसर ने जरा बेचैनी से करवट बदल कर मन्द स्वर से कहा।
"किन्तु भारत शान्ति का समर्थक होने पर भी सैन्य बढा रहा है स्मिथ ने जरा व्यग्य से कहा।
परन्तु भूदेव ने गम्भीर स्वर मे कहा—"यह सत्य है कि भारत समस्त मानव जाति को शान्ति का सन्देश देने और संसार मे शान्ति स्थापित करने मे भगीरथ प्रयत्न कर रहा है परन्तु आत्मरक्षा के लिए उसे अपना सैन्य बल कायम रखना भी परम आवश्यक है। भारत किसी प्रकार की कलह या सघर्ष मे अथवा शस्त्रास्त्र की वृद्धि की होड मे पड़ना नही चाहता, परन्तु वह अपनी जल-थल और नभ सेना को अपनी रक्षा मे समर्थ भी बनाना आवश्यक समझता है।"
"क्या आप शान्ति और अहिंसा के पूरे समर्थक होते हुए भी सेना को बढाए जाना पसन्द करेगे?"
"देखिए, १५ अगस्त, १९४७ को देश के स्वतन्त्र होते ही हमारी सेनाओ पर विशाल देश की रक्षा का गुरुतर भार आ पडा। इधर देश विभाजन के कारण सेनाओ का बटवारा हुआ, और उपर लाखों शरणार्थियो को पाकिस्तान से निकाल कर सकुशल भारत पहुंचाने की जिम्मेदारी भी हमको निबाहनी पड़ी। तभी हमने समझा कि आक्रमण के लिए नही, आत्म सुरक्षा के लिए भी हमे सेना की अत्यन्त आवश्यकता है।"