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खग्रास


गुप्त बातचीत

लिजा अपने सुसज्जित कमरे मे तरुण को ले गई। अलस भाव से वह एक सोफे पर पड़ गया। ऐसा प्रतीत हुआ कि वर्षों बाद उसे इस तरह आराम से बैठना नसीब हुआ जबकि उसके सब अग उन्मुक्त थे। लिजा ने वोदका का जाम उसके होठों पर लगा दिया, और वह एक ही सास मे उसे पी गया।

इसके बाद एक बार उसने जाकर अपने कमरो का भी निरीक्षण किया जिन्हें उसने हर तरह व्यवस्थित और आराम-देह पाया। भारत की राजधानी का यह अशोक होटल अद्वितीय होटल है। सब आधुनिक साज सज्जा से सज्जित है। फिर लिजा की पसन्द, सुरुचि और व्यवस्था के क्या कहने। लिजा के किसी काम मे कोई कैसे मीन मेख निकाल सकता था। लिजा के कमरे से लौट कर तरुण ने कहा--"लिजा, मैं धन्य हूँ कि मुझे तुम्हारा सहयोग मिला। किन्तु क्या यह अच्छा नही होगा कि तुम अपनी सहायता के लिए किसी को नौकर रख लो।"

"तुमने मास्को मे भी यही बात कहीं थी। पर तुम जानते हो कि हम छद्मनाम से कितनी महत्वपूर्ण और नितान्त गोपनीय कार्यवाइया कर रहे है, केन्द्र से हमे सब कुछ नितान्त गोपनीय रखने के सख्त आदेश प्राप्त हैं। फिर ऐसी हालत में किसी तीसरे व्यक्ति का हमारे बीच रहना सर्वथा अवाच्छनीय है। किसी भी क्षण कोई अनहोनी घटना हो सकती है। उससे यदि हम दोनों की या किसी एक की तत्काल मृत्यु भी हो जाए तो वह योही कोई प्रेम का मामला या और साधारण व्यक्तिगत बात कह कर उड़ा दी जा सकती है, पर यदि किसी तीसरी आँख का जरा भी शक शुबहा हुआ तो सोवियत विज्ञान सघ के महान् आविष्कारो का भण्डाफोड़ हो जाएगा।"

“यह तो, डालिङ्ग, तुमने ठीक कहा, परन्तु क्या तुम्हें किसी बात का यहाँ खटका है?"

"खटका? तुम खटके की बात कहते हो, मैं कहती हूँ कि हमारे प्राण किसी भी क्षण लिए जा सकते है। हमारे पीछे पृथ्वी और आकाश में जासूसो का जाल बिछा है।"