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खग्रास


"हाँ, उसका कारण यह है कि यहाँ इस भूमि मे सीसे की खान है। सीसा मुझे आसानी से उपलब्ध हो गया है। फिर सीसे के परमाणु से केवल १० धन प्रपराणु का मुझे विघटन करना पडता है और मै सीसे से सोना बना लेता हूँ।"

"परन्तु परमाणु का यह विघटन कैसे होता है?"

"परमाणु की नाभि को तोडने मे अब हम सफल हो गए है। वैज्ञानिको ने परमाणुओ को तोडने की अब मशीने बना ली है। इस मशीन का नाम है 'आल्टरनेटिंग ग्रेडियेन्ट सीन्कोट्रोन'। यह मशीन भीमकाय है। इसमे परमाणुओ के प्रपराणुओ की दौड का मार्ग ७०० फीट विस्तार मे अण्डाकार है। इसका अर्थ यह है कि उसमे दो फुटबाल के मैदान आसानी से समा सकते है।"

यह कहते-कहते गूढ पुरुष के गम्भीर चेहरे पर मुस्कान खेल गई। परन्तु उन्होने अपना कहना जारी रखा—"ऐसी एक मशीन बनाने की लागत १० करोड रुपए आती है। यह मशीन प्रपराणुओ को २५ अरब बोल्ट की ऊर्जा देती है।"

"तब तो लोग आसानी से सोना बनाने लग सकते है।"

"नही। सोने पर अब संसार का मोह नही है। न सोना अब धन है। वह तो एक धातु मात्र ही है। इन मशीनो के और भी बड़े-बड़े गम्भीर प्रयोग है। कदाचित् इन्ही के द्वारा मनुष्य की घातक रोगो से रक्षा हो जायगी।" गूढ पुरुष यह कहकर मौन हो गए। फिर उठकर चुपचाप दूसरे कमरे मे चले गए। प्रतिभा भी उठी। उसने कहा—"मुझे अब पापा की सेवा मे रहना होगा। पर आप कल अवश्य आइए।"

तिवारी ने उठते हुए कहा—"आऊँगा।"

शान्ति का अग्रदूत भारत

जिस समय अल्मोड़े के गूढ पुरुष जनजीवन और उसे विज्ञान की देन के सम्बन्ध मे अपनी दिव्य वाणी मुखरित कर रहे थे, उसी समय अशोक