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खग्रास


"ठीक है। इस प्रकार भिन्न भिन्न वस्तुओ के परमाणु-भार भी भिन्न भिन्न होगे।"

"नही तो क्या। पारे के परमाणु मे २०० धन प्रपराणु केन्द्रनाभि मे होते है तथा ८० ऋण प्रपराणु उन्हे घेरकर उनके आसपास चक्कर काटते रहते है। अब जब तक प्रपराणु की निश्चित संख्या बनी रहेगी, पारा पास ही रहेगा। परन्तु यदि किसी प्रबल शक्ति द्वारा धन प्रपराणु पारस्परिक आकर्षण को त्याग कर उस शक्ति के प्रभाव से अपना बन्धन तोड़ कर बाहर निकल आए या उनके समूहो मे कुछ और अणुप्रो से दोनो ही हालतो मे पारे का परमाणु पारे का परमाणु नहीं रहेगा। तथा पारा भी पारा न रहेगा। एक बात यह भी है कि जब किसी परमाणु के धन प्रपराणु बन्धन तोड़ कर निकलते है तो उनकी सहानुभूति मे एक अनुपात मे ऋण प्रपराणु भी निकल भागते है। इस प्रकार उस परमाणु की तात्विक स्थिति-रूप-तन-मात्रा सब बदल जाते है।"

"अच्छा तो एक धातु का दूसरे धातु मे बदल जाने का यही कारण है?"

"यही कारण है। यदि किसी शक्ति के द्वारा किसी परमाणु के भीतर इस प्रकार की हलचल मचाई जा सके और उस प्रपराणु के भीतर धन प्रपराणु की अधिकाधिक संख्या को स्थापन किया जा सके तो एक हल्का हीन तत्व भारी व उच्च धातु तत्व मे परिणित हो जायगा। अब देखो ताँबे के परमाणु मे ६३ धन प्रपराणु है। और सोने के परमाणु मे १९७। तथा सीसा के परमाणु मे २०७। अब यदि ताँबे के परमाणु मे १३४ प्रपराणु बढा दिए जाए और सीसे के परमाणुओ से १० धन प्रपराणु निकाल दिए जाएँ तो ये दोनो धातु सोना बन जाएँगी। पारे के परमाणु मे २०० धन प्रपराणु है। सोने से केवल तीन अधिक। अतः उपयुक्त अनुपात मे पारा और ताँबे के सयुक्त परमाणु मे स्वर्ण परमाणु का समत्व ला दिया जाय तो ताँबा और पारा मिलकर सोना हो जायगा।"

"परन्तु आप तो सीसे से सोना बनाते है?"