"यह आप किस आधार पर कहते है?"
"संसार मे तनाव बना हुआ है। यह तो तुम भी मानोगे और उसका असर केवल आर्थिक एव राजनीतिक विचारो को ही नहीं वरन् विज्ञान की शुद्धता को भी कम करता जा रहा है। विज्ञान की प्रगति की अनिवार्य शर्त है सत्य के प्रति पूर्ण सम्मान।"
"क्या आज की वैज्ञानिक प्रगति मे सत्य के प्रति सम्मान नहीं है?"
"संसार मे तनाव रहने पर सत्य के प्रति सम्मान कैसे रह सकता है?"
"आप समझते है कि विज्ञान जन-कल्यागकारी नही है?"
"यदि उसके साथ छेड़छाड़ न की जाय तो निश्चय ही विज्ञान मानव जाति का कल्याण ही करेगा। परन्तु विश्व के तनाव के कारण इसका उपयोग राजनीतिक गुट विशेष अथवा सिद्धान्त विशेष के लोगो का स्वार्थ साधने मे होता है और अब तो विज्ञान का यह दुरुपयोग चरम सीमा पर पहुँच चुका है।"
"कैसे?"
"क्या तुम देख नही रहे—अब तो बड़े कहे जाने वाले राष्ट्र भी विमूढ की भाँति यही सोचने लगे है कि आगे क्या? और इसका उत्तर उनके पास नही है।"
"आपके पास है?"
"हाँ, मैं कह सकता हूँ कि इसका एकमात्र उत्तर है कि विज्ञान की सफलता उसकी मानव समाज के कल्याण में सहायक होने की क्षमता ही है।"
"पापा, आप सोना कैसे बनाते है?"
"आखिर तुमसे न रहा गया। सोने का लोभ तुम्हे यहाँ खीच लाया था न, फिर जितना चाहो, उतना सोना ले क्यो नही जाते यहाँ से?"
"लोभ नही पापा, कौतूहल, मै केवल कौतूहलवश ही यह प्रश्न कर