"किन्तु आप विज्ञान के विकास को क्या स्वीकार ही नही करना चाहते"
"क्यो नही। परन्तु मैं समझता हूँ प्राचीन भारतीय मनीषि विज्ञान को सत्य की खोज का साधन मानते थे। मैं तो चाहता हूँ कि भारतीयो के मन मे उनकी मान्यता का समादर हो, तो भारत की प्रगति सही अर्थ मे हो सकती है।"
"कृपा कर अपना अभिप्राय साफ-साफ कहिए।"
"साफ ही सुनो। कोई देश किस हद तक वैज्ञानिक प्रगति कर गया है, इसे उसकी ध्वसात्मक शक्ति को देखकर आकना भारतीय दृष्टिकोण नही है। भारत तो मानव-समाज के कल्याण मे सहायक होने की क्षमता के अनुसार ही विज्ञान की सफलता आकना चाहता है।"
"तो आप बड़े राष्ट्रो की इस वैज्ञानिक प्रगति को तुच्छ समझते है?"
"मै उसके प्रति सम्मान की भावना नहीं रखता। मैं तो यह कहता हूँ कि मानव-जीवन को सुखी और सम्पन्न बनाने योग्य कोई छोटा-सा भी आविष्कार हो तो उसे इन भयानक विश्वसात्मक शस्त्रास्त्रो की अपेक्षा अधिक महत्वपूर्ण समझना चाहिए।"
"क्या हमारे देश के वैज्ञानिको का यही मत है?"
"शायद नही है। वे जानते है कि हमे भी राष्ट्रो के समाज मे रहना पड़ रहा है। वस्तु के मूल्याकन का जो तरीका सब प्रमुख राष्ट्रो का है, वे उससे प्रभावित है।"
"आपकी समझ मे यह ठीक नही है?"
"यह दुर्भाग्य की बात है कि विज्ञान की प्रगति तो जारी रहे और संसार मे वैज्ञानिक वातावरण न पैदा हो।"
"आप समझते है कि संसार का वातावरण वैज्ञानिक नही बन रहा है?"
"मै तो यह समझता हूँ कि संसार का जो वातावरण बन रहा है, वह विज्ञान के लिए द्रोहात्मक है।"