"यह कैसी बात है?"
"सापेक्ष्यवाद के अनुसार घटनाएँ घटित नहीं होती। वरन् उनमे से होकर हम गुजरते है—जैसे रेल में बैठकर स्टेशनो से।"
"तो अब तक ईथर के सम्बन्ध मे वैज्ञानिको की भ्रान्त ही धारणा थी?"
"सर्वथा भ्रान्त। टाम, वग, मैक्स, प्लाक, सर जार्ज स्टोक्स, लारैज, मिकिल्सन, मुले, सर ओलिवर लौज आदि वैज्ञानिक ईथर को लेकर भारी भूल मे थे। वे यह नही जानते थे कि पृथ्वी के अपनी कीली पर घूमने के साथ साथ उससे सम्बद्ध व्योम भी घूमता है। आईस्टीन के सापेक्ष्यवाद ने वैज्ञानिको की इस जटिल समस्या का सरल समाधान कर दिया। उन्होने प्रमाणित किया कि विश्व मे सर्वत्र सक्रिय विद्युत चुम्बकीय (ऐलेक्टो मेनेटिक) शक्ति स्वतन्त्र रूप से कार्य नही करती। इसी से कीली पर घूमने वाली पृथ्वी के समानान्तर उडने वाले वायुयानो मे विद्युत-चुम्बकीय शक्ति के सक्रियता-सम्बन्वी परीक्षणो के परिणाम पृथ्वी पर किए गए परिणामो से भिन्न होते है। वैज्ञानिक मैक्सवेल के सिद्धान्त के अनुसार प्रकाश एक विद्युत्-चुम्बकीय घटना है। आईंस्टीन कहते है कि समान गति से गतिशील पदार्थो और सघटनो मे विद्युत् चुम्बकीय क्रिया एक ही प्रकार के निष्कर्षों को जन्म देती हुई नैसर्गिक रूप से सम्पादित होती रहती है। इसी आधार पर यह खोज की गई कि प्रकाश भी समान गति वाला पदार्थ है। इसका यह अभिप्राय है कि विश्व मे कोई भी घटना क्यो न होती रहे, प्रकाश की गति पर उसका कोई प्रभाव न पडेगा। गतिशील पदार्थ से जो प्रकाश उत्पन्न होगा, उसकी गति उतनी ही होगी जितनी कि किसी स्थिर पदार्थ से निकलने वाले प्रकाश की। अर्थात् प्रकाश का प्रसरण दोनो ही अवस्थामो मे १,८६,००० मील प्रतिसैकिण्ड की गति से होगा। इसका यह अर्थ हुआ कि हम ऐसे ससार मे रह रहे है जहाँ का देश-काल का परस्पर सम्बन्ध सापेक्षता नियम के अन्तर्गत इतना नपा-तुला है कि वहाँ १,८६,००० मील प्रति सैकिण्ड प्रवेग (वैलोसिटी) की अन्तिम सीमा है।"
"अच्छा, ऊर्जा और भूत द्रव्य की अभिन्नता कैसे मानी गई?"