स्थिति की दृष्टि से यह बात अत्यधिक ठेस पहुँचाने वाली थी, भले ही मनुष्य के मस्तिष्क को यह रुचिकर क्यो न प्रतीत हुई हो।" एक मन्द स्मित रेखा उनके ओठो पर फैल गई। तिवारी अवाक् उनकी मुखाकृति देख रहे थे। उन्होने और भी गम्भीर वाणी से कहा—"मै आकाशगंगा-केन्द्रीय ब्रह्माण्ड की बात कह रहा हूँ। आकाशगंगा केन्द्रीय ब्रह्माण्ड की कल्पना ने पृथ्वी और इसके जीवन को करोंड़ो आकाशगंगाओ के ब्रह्माण्ड मे एक महान्आ काशगंगा के सिरे पर पटक दिया। मनुष्य अपनी आकाशगंगा के करोंड़ो नक्षत्रो के बीच एक नगण्य-सी वस्तु बन गया। भू-रसायन शास्त्र तथा भूतकालीन युगो के जीवन का अध्ययन करने वाले व्यक्तियो की खोजो के अनुसार मनुष्य ब्रह्माण्ड की एक हाल की और नगण्य उपज सिद्ध हुआ। पृथ्वी और सूर्य को अपने महत्वपूर्ण पद से च्युत कर देने तथा आकाशगंगाओ को सर्वोच्च केन्द्र स्थान मे स्थापित कर देने से वैज्ञानिक प्रगति की समाप्ति नही हुई है। अब एक अन्य बड़े संशोधन की आवश्यकता अनुभव की जा रही है। यह संशोधन वैज्ञानिको के लिए सर्वथा नया और असभावित नही है। साथ ही यह एक या दो वैज्ञानिक खोजो मात्र का भी परिणाम नही है।"
इतना कहकर गूढ पुरुष मौन हो गए। वे बड़ी देर तक मौन रहे। इस समय न जाने उनकी दृष्टि किस जगत् मे विचरण कर रही थी। बड़ी कठिनाई से तिवारी का बोल फूटा-उन्होने बद्धाजलि सहमते हुए पूछा—"भगवन्! क्या इस ब्रह्माण्ड मे हम अकेले है??"
गूढ पुरुष ने एक मर्मभेदी दृष्टि से तिवारी को देखा। फिर जलद गम्भीर स्वर मे कहा—"हमारी नई समस्या समस्त ब्रह्माण्ड मे जीवन के प्रसार से सम्बन्वित है। भूमि, समुद्र और हवा मे रहने वाले सब भौतिक प्राणियो के प्रतिनिधि के रूप मे हम यह प्रश्न पूछ सकते है कि 'क्या इस ब्रह्माण्ड मे अकेले हम ही हे इस प्रश्न के सम्बन्ध मे तीन दैवी घटनानो को सबसे अधिक विचारणीय समझता हूँ। पहली, नक्षत्रो की संख्या से सम्बन्धित है, दूसरी प्राचीन काल के महान् संकटो से सम्बन्धित है तथा