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खग्रास


तिवारी चुपचाप सुनते रहे। उनसे कोई प्रश्न करते न बन पडा। गूढ पुरुष ने आगे कहना जारी रखा—

गूढ पुरुष की गूढ बाते

"अखिल ब्रह्माण्ड मे असंख्य ऐसे ग्रह विद्यमान है, जहाँ मानसिक दृष्टि से प्रबुद्ध जीव रहते है। इन प्राणियो की मानसिक शक्ति मनुष्य की अपेक्षा भी अधिक शक्तिशाली है।" गूढ पुरुष ने गम्भीरतापूर्वक अपने उनीदे से पलक उठाकर कहा। तिवारी कुछ देर अत्यन्त गम्भीर भाव से उनके मुख की ओर देखते रहे। उनके माथे पर चिन्ता की रेखाएँ उभर आई। गूढ पुरुष ने उसी भावमुद्रा मे फिर कहा—

"भौतिक विश्व मे मनुष्य का स्थान तथा उसके क्रिया कलापो का जो लोग अध्ययन कर रहे है, उन्हे आकाश गंगाओ की बिखेर, वृहत् व्यूहाणुओ (मैक्रोमौलिक्यूल्स) का वातावरण तथा नक्षत्रो की आश्चर्यजनक बहुलता इस बात के लिए विवश करती है कि वे अपनी धारणाओ मे कुछ सशोधन करे।"

"कैसा सशोधन?"

"मनुष्य की बुद्धि के विकास के इतिहास मे, जबकि अपने चारो ओर की दुनिया की मनुष्य की जानकारी निरन्तर बढ रही थी, एक समय ऐसा भी आया होगा, जब कि प्रारम्भिक कबीलो के विचारको और दार्शनिको ने यह अनुभव किया होगा कि यह समस्त संसार केवल मनुष्य के चारो ओर केन्द्रित नहीं है। उस समय भू-केन्द्रीय विश्व की भावना साधारण रूप मे स्वीकार की गई। यह माना गया कि समस्त विश्व पृथ्वी के चारो और केन्द्रित है। यह प्रथम संशोधन मनुष्य की अह भावना को सामान्य रूप से ठेस पहुचाने वाला था, क्योकि मनुष्य समस्त जीवित प्राणियो मे सर्वश्रेष्ठ प्रतीत होता था।"

"इसके बाद?"

"भौतिक विश्व मे मनुष्य के सम्बन्धो की दृष्टि से दूसरा संशोधन उस समय हुआ, जब भू-केन्द्रीय विश्व की धारणा का परित्याग कर दिया