लाख मील तक चला जायगा। यह भी सम्भव है, वह सूर्य का दसवां उपग्रह बन जाय।"
"मेचटा क्या?" प्रतिभा ने पूछा।
"उसे वे मेचटा ही कहते है।" गूढ पुरुष के होठो पर मुस्कान फैल गई। उन्होने अपनी भारी-भारी पलक उठा कर तिवारी की ओर देखा। तिवारी ने दौड कर उनके चरणो मे गिर कर साष्टाग दण्डवत की। उन्हे अनायास ही हाथो मे उठाकर उनके दोनो कन्धो पर हाथ रख कर स्नेहसिक्त स्वर मे कहा—'अच्छे हो?'
"आपका आशीर्वाद है पापा।"
तिवारी के मुह से पापा शब्द सुनकर गूढ पुरुष बालक की भाँति खिलखिला कर हँस पडे। फिर एक हाथ उनकी पीठ पर और दूसरा अपनी कन्या की पीठ पर रख कर खाने की टेबुल पर आ बैठे। प्रतिभा ने शहद मिलाकर एक गिलास दूध दिया। दूध पीकर उन्होने हस कर कहा—"तुम भैया, मुझसे क्यो मिलना चाहते थे, कहो तुम्हारा क्या प्रिय करू?"
"पापा मै तो दर्शनो ही से कृतार्थ हो गया।"
"दर्शनो ही से क्यो? तुम तो अभी तरुण हो, इतने कम से कैसे सन्तुष्ट हो गए?"
"पापा, मेरे लिए यह प्रसाद असाधारण है।"
"मालूम होता है, प्रतिभा ने तुम्हे खूब भरमाया है।"
"जी नही, मुझे दिव्य दृष्टि दी है।"
"अच्छा ही है। सावधान रहना, और दिव्य दृष्टि से दिव्यालोक के दर्शन करना। देखो! रूस और अमेरिका अन्तरिक्ष को विजय करने मे सलग्न है। इससे सम्पूर्ण मानव जाति को दीर्घ-दृष्टि प्राप्त होगी। ब्रह्माण्ड के सम्बन्धाे से वह अपने को क्रियात्मक रूप मे बाध लेगा। और उसका बान्धव परिवार महान् हो जाएगा।"