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खग्रास

भीषणतम बन जाती है। पर हकीकत मे मानव न तो उस प्रवृत्ति का, न उसके भीषणतम परिणाम का जिम्मेदार है। वास्तव मे वह बेबस है और उसे सयत किया जा सकता है।"

"आप समझती है संसार का प्रत्येक मनुष्य असाधारण सत्व बन सकता है?"

"वह तो जन्मत ही असाधारण सत्व है। वह दुनिया की सबसे बडी इकाई है।"

"इसी से आप और पापा किसी मानव से सेवा नही ले सकते है।"

"पापा ने तो मानव की पूजा का व्रत लिया है। वे सब कुछ मानव हित के लिए, मानव को अभय करने के लिए करते है। वे मानव से सेवा कैसे ले सकते है?"

"इसी से प्रति सप्ताह वे बाजार से राशन अपने कन्धो पर लाद लाते है।"

"पापा कभी श्रम से जी नही चुराते। वे कभी आलस्य नहीं करते। कभी क्रुद्ध नही होते, कभी अप्रिय बोल नहीं बोलते।"

"क्या पापा का कोई शत्रु मित्र भी है?"

"चराचर जगत् मे जो कुछ है, सब उनके मित्र है। शत्रु कोई नहीं मित्रवत् सर्व भूतेषु।"

"क्या पापा को कभी किसी व्यक्ति के द्वारा कष्ट नही भोगना पड़ा?"

"बहुतो के द्वारा। परन्तु उन सबको उन्होने क्षमा कर दिया। अभी उस दिन एक चोर घर मे घुस आया था, उसे पापा ने सत्कार पूर्वक भोजन कराया और यह कह कर कि 'मित्र' इस घर मे से जो वस्तु तुम्हे पसन्द हो ले जाना', अपनी लेबोरेटरी मे चले गए। बड़ी देर तक वह चोर वही भूमि मे पड़ कर सिसक-सिसक कर रोता रहा। आखिर मैने उसे बहुत समझाया

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