"हाँ, मानव मन जिस भावना से प्रेरणा पाता है, और मन मे जो काम, क्रोध, हत्या-चोरी और दूसरे छोटे-बड़े अपराधो की प्रवृतियाँ होती है, ये उनके शरीर स्थित विशेष ग्रन्थियो के अन्त स्राव के कारण है। यदि उन ग्रन्थियो मे शस्त्र क्रिया द्वारा हेर-फेर कर दिया जाय तो मनुष्य का स्वभाव बदल जायगा।"
"क्या ऐसा भी सम्भव हो सकता है?"
"पापा ने अमेरिका मे ऐसे अनेक सफल प्रयोग किए थे। और उनके शिष्य अब भी कर रहे है।"
"कैसे प्रयोग,"
"एक दुर्दान्त खूनी डाकू था। उस पर अनेक हत्याओ और डकैती के अभियोग थे और अदालत ने उसे मृत्युदण्ड दिया था। परन्तु पापा के अनुरोध पर वहाँ की सरकार ने परीक्षण के तौर पर उस अपराधी को पापा को सौप दिया। पापा ने आप्रेशन करके उसकी एक ग्रन्थि काट दी। इसके बाद वह आदमी भेड़ के समान सीधा-सादा और सरल पुरुष बन गया। पापा के प्रयत्न से उसका प्राणदण्ड क्षमा कर दिया गया और अब वह एक आदर्श नागरिक पति और पिता है।"
"यह तो बडी विचित्र बात है।"
"विचित्र क्या है। क्या आप बन्दरो को, चूहो को नही देखते। स्वभावत ही कुछ काट-कूट करने, तोड-फोड करने की उनमे प्रवृत्ति होती है और लोग उनके द्वारा किए गए नुकसान को उनका अज्ञान व स्वभाव कहकर सहन कर लेते है।"
"वे तो पशु है। पर मनुष्य तो बुद्धिमान जीव है।"
"तभी तो वह अधिक गम्भीरतम अपराध कर बैठता है। गलती से यदि कोई साधारण अखाद्य खा लिया जाय तो वमन होकर शरीर शुद्ध हो जाता है, पर यदि विष खा लिया जाय तो मृत्यु हो जाती है। बस यही बात है कि मनुष्य को अपराध की प्रवृति जब उसकी बुद्धि से प्रेरित होती है तो वह