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खग्रास

वैज्ञानिक भूभौतिक कार्यक्रम के अन्तर्गत ध्रुव-प्रभा, वायु-तेज, ब्रह्माण्ड किरण, हिमनद विज्ञान, अयन मण्डल, देशान्तर और अक्षाश, समुद्र विज्ञान, आकर्षण शक्ति आदि अनेक विषयों के पर्यवेक्षण के सम्बन्ध मे नई-नई जानकारी प्राप्त करने के भगीरथ प्रयत्न कर रहे थे। ससार के राष्ट्रों मे इस समय अग्रगण्य सोवियत रूस और अमेरिका थे जो विज्ञान और सामरिक शक्ति मे एक दुर्घर्ष उत्कर्ष का प्रदर्शन करते जा रहे थे। दोनो प्रबल राष्ट्रो मे इस समय व्योम विजय की होड़ मची हुई थी। और वे व्योम अभियान द्वारा चन्द्रमा, मगल, शुक्र आदि ग्रहो तक पहुँचने तथा सौर मण्डल पर अधिकार प्राप्त करने की स्पर्धा कर रहे थे। इस कार्य के लिए दोनो राष्ट्र असाधारण शक्तिशाली राकेट और अन्तर्राष्ट्रीय महाप्रक्षेपणास्त्र बनाते जा रहे थे। यह इस युग की अभूतपूर्व घटना थी जिसे संसार विमूढ होकर देख रहा था। इनके माध्यम से इन राष्ट्रो को इतने शक्तिशाली साधन प्राप्त हुए थे कि वह व्योम में उपग्रहो की स्थापना कर पाए थे। अमेरिका को अभी यद्यपि सफलता नहीं मिली थी और वह अपने प्रयास में विफल मनोरथ ही था परन्तु इन दोनों महाराष्ट्रों ने ससार पर यह तो प्रकट कर ही दिया था कि उनके पास अन्तर्वीपीय अमोघ महाप्रक्षेपणास्त्र मौजूद हैं जिनकी सहायता से यदि वे चाहें तो पृथ्वी के किसी भी भाग मे बैठे ही बैठे प्रलयकारी अणु बम और उद्जन बम फेक कर ससार के सब मनुष्यों को मार डाल सकते हैं।

भारत

अन्तर्राष्ट्रीय भूभौतिक वर्ष के निरीक्षण कार्यक्रम मे नवजागरित भारत के लगभग साठ केन्द्र भाग ले रहे थे। भूभौतिकी वर्ष का प्रारम्भ पहिली जुलाई से प्रारम्भ हुआ था। इसे यद्यपि वर्ष कहा गया था, परन्तु वास्तव में इसकी अवधि १८ महीने थी। यह तथाकथित वर्ष ३१ दिसम्बर सन् १९५८ को समाप्त होने वाला था।

इस अन्तर्राष्ट्रीय भूभौतिक वर्ष के भारतीय कार्यक्रम का संचालन उससे सम्बन्धित भारतीय राष्ट्रीय समिति कर रही थी जिसके बारह सदस्य