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खग्रास


सुबह जब वे उठे तो उनका चित्न हल्का था। किन्तु वह इतने गम्भीर थे कि दिलीप कुमार को नाना प्रकार की आशकाएँ होने लगी। उन्होने घुमा फिरा कर अनेक प्रश्न किए। उन पर से वह केवल इतना ही अनुमान लगा सके कि गूढ पुरूष से उनकी मुलाकात नहीं हुई। और एक किसी अज्ञात दुर्घटना या त्रासदायक दृश्य से वह इतने डर गए है कि उनकी चित्तवृति विकृत हो गई है। उन्होने डाक्टर को बुलाने को कहा—पर तिवारी ने निषेध कर दिया। उन्होने इतना ही कहा—"मुझे केवल एकान्त विश्राम की आवश्यकता है।" अपने भेद को गुप्त रखने तथा मौन रहने का उन्हे यही उपयुक्त बहाना मिला। दिलीपकुमार और उनकी पत्नी को जो किसी भयानक दुर्घटना का अनुमान हो गया था, उसका उन्होने खण्डन नही किया।

इस प्रकार चुपचाप पड़े रहकर उन्होने अपना समूचा दिन काट दिया। एक बार उन्होने थोडा अल्पाहार किया और फिर सोने का बहाना करके चुपचाप पड रहे।

कुछ का कुछ

दूसरे दिन जब सब लोग भोर मे उठे तो तिवारी की शैय्या खाली थी। उनकी राइफल भी वही पडी थी। केवल एक छोटा-सा पुर्जा उनके बिछौने पर पड़ा था। उसमे लिखा था—मैं एक आवश्यक कार्यवश जा रहा हूँ, आपको मेरे सम्बन्ध मे चिन्तित होने की आवश्यकता नही है। इस पुर्जे पर से दिलीपकुमार कुछ भी नही समझ सके। वे अत्यन्त भयभीत और चिन्तित हो उठे। उनका मन हुआ कि तिवारी की खोज की जाय। एक बार उन्होने यह भी चाहा कि पुलिस की सहायता ली जाय, परन्तु रमा ने कहा—अभी कुछ देर प्रतीक्षा की जाय।

दोपहर हो गया, दिन ढलने लगा—पर तिवारी की कोई सूचना नही मिली। दिलीपकुमार अब एकदम असयत हो गए। एक बार उनका मन हुआ कि उस बंगले तक जाएँ और उस गूढ पुरुष से तिवारी के सम्बन्ध मे कुछ पूछे। पर तिवारी से उन्हे ज्ञात हुआ था कि उस पुरुष से तो उनकी कोई मुलाकात ही नहीं हुई है। अतः यह विचार उन्होने त्याग दिया।