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खग्रास


"यदि वह शर्त प्राण देने की भी हो तो मुझे स्वीकार है।"

बाला हॅस दी। उसने कहा—"नही, ऐसी बात नहीं। एक प्रतिज्ञा आपको करनी हागी कि यहाँ आप जो कुछ देखे, जो कुछ सुने, उसका एक शब्द भी किसी संकेत मात्र से किसी पर प्रगट न करे। सब कुछ अत्यन्त गुप्त रखे। यह शर्त विश्व कल्याण के निमित्त है। और पापा के साथ विश्व के वैज्ञानिको के जो अन्तर्राष्ट्रीय समझौते है, उनके आधार पर है।"

"आप और पापा दोनो ही महामहिम सत्य है। मुझे अक्षरश आपकी आज्ञा स्वीकार है।"

"तो आप जब चाहे आ सकते है। यथावसर पापा से भी आपकी मुलाकात हो जायगी।"

"बडी कृपा। तो मै अब चला।"

"क्या भोजन हमारे साथ नही करेगे?"

"अभी नही। फिर कभी। सम्भवत परसो मै आऊगा, यदि आपको असुविधा न हो।"

"आइए, किन्तु अब आप जा ही रहे है?"

"जी हाँ।"

"तो यहाँ की जो वस्तु पसन्द हो ले लीजिए।"

"आपका जो अनुग्रह मिल गया है, वही यथेष्ट है।" तिवारी ने हाथ जोड कर बाला को, उस महामहिमावती बाला को, नमस्कार किया और चल दिए।

अनिर्वचनीय

तिवारी जब वापस डेरे पर लौटे तो उनकी दशा एक ऐसे पुरुष की सी हो रही थी जिसने कोई गहरा नशा खा लिया हो। उनकी वाणी मौन, नेत्र किसी अनिर्वचनीय भावलोक मे मग्न और पैर जैसे लडखडाते हुए। ऐसा प्रतीत होता था मानो उन्हे अकस्मात ही किसी गहरी और असाधारण दुर्घटना का सामना करना पडा हो। यद्यपि अभी-अभी उन्होने उस गूढ पुरूष को देखा