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खग्रास


"पापा कहते है कि राजनीतिज्ञो के हाथ से जन जीवन छीन कर वैज्ञानिको और साहित्यकारो को जनजीवन का नेतृत्व प्रदान कर दिया जाय। यह शर्म की बात है कि वैज्ञानिक आज फौजी आदेश का यन्त्रवत् पालन रहे है।"

"मैने आपका कितना समय नष्ट किया। बातचीत मे मुझे इसका ध्यान ही नहीं रहा। पर सच पूछिए तो मै यहाँ आकर सचमुच विमूढ हो गया हूँ। मुझे आपसे मिलने की तथा जो कुछ यहाँ आकर देखा, वह देखने की कल्पना भी न थी। अब सच बात कह दूं—पापा को हम लोगो ने बाजार जाते देख लिया था। उनके सम्बन्ध मे हम लोग बात करते रहे है। आज मैं अपना कौतूहल नही रोक सका। इधर आ निकला।"

"आप शायद पापा की गैरहाजिरी मे उनके निवास की जांच पड़ताल करना चाहते थे। है न?" बाला ने सरल भाव से हँस कर कहा।

"असल बात तो यही थी। मै नही समझता आप मेरा यह अपराध कैसे क्षमा कर सकती है।"

"अपराध की क्या बात है। पापा के सम्बन्ध मे बहुतो का कौतूहल है, आप जरा अधिक साहसी है। बस यही बात है।"

"आपने ठीक कहा। किन्तु मेरी यह इच्छा शायद आप अस्वाभाविक न समझेगी कि मै जब तक यहाँ हूँ, कभी-कभी आपसे भेट करू और अब हमारा परस्पर परिचय भी होना उचित है। मेरा नाम रमेशचन्द्र तिवारी है। किन्तु आप मुझे तिवारी कह कर पुकार सकती है। अब क्या आप अपना नाम मुझे न बताएंगी?"

"मेरा नाम 'प्रतिभा' है। पर पापा मुझे बेबी कह कर पुकारते है।"

"आप प्रतिभा की साकार मूर्ति है। तो क्या आप मुझे कभी-कभी इधर आने की अनुमति प्रदान करेगी? तथा क्या मुझे पापा के दर्शन और उनसे बात-चीत का सौभाग्य भी प्राप्त होगा?"

"एक शर्त पर।"