कहना है—बँगले मे से विचित्र-विचित्र आवाजे कभी-कभी आती है। जिनसे सारी पहाडियाँ थर्रा उठती हैं।"
दिलीप ने हँसकर कहा—"चरन की ये दिलचस्प बाते तो मै बहुत सुन चुका हूँ। पर तुम सचमुच उसे नजदीक से देखना चाहते हो तो झटपट बाजार की ओर चल दो। वहाँ अवश्य उससे तुम्हारी भेट हो जायगी।"
तिवारी मन ही मन कुछ निश्चय किया। फिर उठकर शिकारी कोट पहिना, भारी पहाडी बूट कसे, रिवाल्वर की अच्छी तरह जाँच की, उसमे पूरी गोलियाँ भरी थी। फिर उसे जेब मे डाला। इसके बाद कारतूसो की पेटी कधे पर डाली और राइफल कन्धे पर रख कर चलने को कदम बढाया।
दिलीप ने कहा—"यह क्या तुम तो इस तरह लैस होकर जा रहे हो जैसे शेर का शिकार करने जा रहे हो।"
"क्या हर्ज है, शेर, भालू, गैडा, भैसा जो मिलेगा, उसी का शिकार करूँगा।"
"लेकिन तुम्हारा इरादा क्या है?"
"मैं उस बँगले तक एक बार जाना चाहता हूँ।"
"लेकिन यह खतरनाक हो सकता है।"
"शेर के शिकार से भी ज्यादा?"
"बहतर हो तुम एक बार बाजार जाकर उसे नजदीक से देख लो। और सम्भव हो तो बातचीत भी करो।"
"मैं पहिले उसके बँगले को उसकी गैर हाजिरी मे देखना चाहता हूँ। आप चिंता न कीजिये, मै जल्दी ही लौट आऊँगा।"
इतना कह कर तिवारी लम्बे-लम्बे डग भरते हुए उस ओर चले जिधर पहाडी की चोटी पर वह बँगला था।