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खग्रास

उसका सिगार करता है। उमा चरन से बहुत खुश है। वह उसे चरन काका कह कर पुकारती है।"

एक सप्ताह से इस सुखी और सक्षिप्त परिवार मे एक नए मेहमान का इजाफा हुआ है। दिलीप उन्हे तिवारी कह कर पुकारते है। रमा तिवारी जी कहती है, और उमा चाचा जी कहती है। पूरा नाम है—रमेशचन्द्र तिवारी। बाराबकी जिले के निवासी है। और विज्ञान की उच्च शिक्षा प्राप्त करके विदेश से लौटे है। अमेरिका, रूम और सारे योरोप की सैर की है। दिलीप कुमार के सहपाठी और अभिन्न मित्र है। उम्र दिलीप कुमार से बहुत कम है। अविवाहित है। शिकार और शतरज का शौक है। शरीर से तगडे है। तबियत शायराना है। हजारो शेर जबान पर है। हसमुख आदमी है। दिलीप कुमार को भाई साहब कह कर पुकारते है, रमा को भाभी और उमा को बिटिया। जब से आए है, उमा उनके गले का हार बनी है। दिलीप को शतरज का शौक नही है, खेलते है और हार जाते है। तिवारी को मजा नही आता। अब वे उमा के साथ शतरज खेलते है। उमा खिलाडी की तरह मोहरे जमा कर मनमानी चाल चलती है। उससे अपने सब मुहरे पिटवा कर तिवारी उसे सिर से ऊपर उठाकर उछालते है। कहते है—बिटिया ने मेरे हाथी, घोडे, प्यादे, बादशाह, बजीर सब पीट दिये। रमा मुस्करा कर रह जाती है।

मेहमान का इस परिवार मे यह इज़ाफा परिवार के वातावरण को और मुखरित कर रहा है। दोनो मित्र या तो बराण्डे मे आराम कुर्सी पर बैठ कर गप्पे लडाते है या शतरज खेलते है। जब रमा भी गोष्ठी मे होती है तो विदेशो के मनोरजक सस्मरण सुनाते है। कभी बन्दूक कन्धे पर रख कर भोर के तडके ही शिकार को निकल पडते है तो शाम तक लौटते है। दिन भर पहाडो मे टक्कर लगाते फिरते है।

बहुधा इन मित्रो मे इस रहस्यपूर्ण व्यक्ति की चर्चा चलती है। रमा भी इस चर्चा में दिलचस्पी लेती है। चरन ने उससे कहा है—कि वह कीमियागार है, सोना बनाता है। दूर से आते-जाते उसने उसे देखा भी है।