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खग्रास


दो मित्र

अलमोडा नगर से उत्तर पूर्व की ओर सूवी पहाडी पर वह बंगला है, जिसमे यह रहस्यपूर्ण पुरुष रहता है। नगर से उसी दिशा मे, नगर से कोई दो फर्लाङ्ग के अन्तर पर एक और बंगला है। बंगला छोटा सा, किन्तु अत्यन्त सुन्दर और सब आधुनिक सुविधाओ और सज्जा से भरपूर है। उसमे बिजली की रोशनी है। बाहर अलूचे, आडू, खुमानी और अखरोट के पेड है। मुख्य सडक से बंगले तक एक छोटा सा टेढा-मेढा मार्ग जाता है। मार्ग पर सुर्खी कुटी हुई है।

बंगले के स्वामी दिलीप कुमार है। दिलीप कुमार कुमायुँ प्रान्त के ही निवासी है। पर उनकी शिक्षा-दीक्षा इगलैण्ड मे हुई है। वहाँ से वह गणित मे डाक्टर होकर आए है, और लखनऊ के एक कालेज मे गणित के प्राध्यापक है। दिलीप कुमार स्वस्थ, सुन्दर और गठित शरीर के तरुण है। अभी उनकी आयु बत्तीस बरस की है, परिवार मे इनकी पत्नी रमा और पाँच वर्ष की कन्या उमा है। इन तीनो व्यक्तियो की गृहस्थी के साथ-साथ गुपालसिंह रसोइया और गंगासिंह ड्राइवर तथा चरने माली, ये तीन सेवक और इस बंगले मे रहते है। छुट्टियो के बाद सब लोग लखनऊ चले जाते है। केवल माली चरन रह जाता है। माली कही पूरब का रहने वाला है, बूढा आदमी है। और दिलीप कुमार के पिता के जमाने से नौकर है। माली अपनी स्त्री के साथ बंगले के बगल मे ही एक कोठरी मे रहता है। उसके कोई सन्तान नही है। ड्राइवर गंगासिह, बैरा और चपरासी का भी काम करता है।

दिलीप कुमार बडे खुशमिजाज और सौम्य प्रकृति के आदमी है। वेशभूषा सादा रखते है। पढने-लिखने के अतिरिक्त सगीत का भी इन्हे शौक है। बहुधा अध्ययन मे अपना अधिक समय लगाते है। रमादेवी एक सुन्दरी, तरुणी है। पति पत्नी मे खूब घुटती है। रमा बाई मृदु स्वभाव की उदार रमणी है। नौकर चाकर उन्हे बहुत मानते है। उमा का अधिक समय माली चरन के पास बीतता है। वह उसे गाना सुनाता है, कहानियॉ कहता है। नाच कर दिखाता है। घोड़ा बनकर पीठ पर चढ़ाता है। और फूलो से