यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२५४
खग्रास

अलमोडे से कोई पाँच मील के अन्तर पर पहाडी की एक ऊँची- चोटी पर एक पुराना बगला है। जो मध्यभारत के किसी राजा ने बनवाया था। बगला बहुत विशाल और पुराना है। वह एक उजाड और वीरान जगह मे है, उधर कोई जाता नही है। बरसो से वह खाली पड़ा था। चौकीदार, रखवाला भी कोई उस बगले मे नही रहता था। उसी बगले मे यह रहस्यमय पुरुष आकर बस गया है। किस प्रकार? यह कोई नही जानता। सप्ताह में एक बार वह बस्ती मे आता है। आकर बाजार मे एक सोने का टुकडा बेचता है। जो रुपये मिलते है, उनसे वह आटा, दाल, चीनी, घी, सब्जी, आदि खरीद कर सबका गट्ठर अपने कन्धे पर लाद कर लम्बे डग भरता हुआ चला जाता है। कुली मजदूर से वह काम नहीं लेता। बाजार से सौदा खरीद कर वह जो रुपए देता है, उसकी फिरती के पैसे नहीं लेता, रुपया दे कर चल देता है।

बहुत लोगो को उसने सोने के टुकडे दिए है। उसके बगले के पास जाने वाले गडरिये या चरवाहे, जो देवयोग से उधर जा निकलते है, उनकी हथेली पर चुपचाप एक टुकडा सोना रख देता है। और मुस्करा कर चल देता है।

नगर और आस-पास धीरे-धीरे उसकी प्रसिद्धि होती जाती है। कुछ लोग उसे कीमियागर कहते है। कुछ लोग पहुँचा हुआ सिद्ध कहते है। परन्तु वह किस देश का रहने वाला है, कौनसी भाषा बोलता है, यह कोई नही जानता। सोना पाने के लालच मे बहुत लोग उसे ढूढते रहते है, पर वह किसी को कभी दीखता ही नही। नगर मे जब आता है तो किसी को उससे बात करने की हिम्मत नहीं होती। साहस करके कोई उसके पास जाता है तो वह उसे दूर भगा देता है।

उसके बगले के निकट जाने का साहस कोई जीवट का आदमी भी नहीं कर सकता। न कोई आदमी उससे बातचीत ही करने का साहस रखता है। नगर मे वह सीधा आता है और अपना काम करके चुपचाप चला जाता है। लोग देर तक उसकी चर्चा करते रहते है और उसकी ओर देखते रहते है।