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खग्रास

और अमेरिका ने अपने तीनो हिस्से पश्चिमी जर्मनी के सुपुर्द कर दिए ओर रूस ने पूर्वी जर्मनी के। इस प्रकार बर्लिन भी पूर्वी बर्लिन और पश्चिमी बर्लिन के नाम से दो भागो मे बट गया। पर जो जाही जलाली पश्चिमी बर्लिन मे आई वह पूर्वी बर्लिन मे नही आई। पूर्वी जर्मनी ने वैसी चतुर्दिक उन्नति भी नही की, जैसी पश्चिमी जर्मनी ने। पश्चिमी जर्मनी समस्त जर्मनी का, जनसख्या के अनुसार लगभग ३/४ भाग था। जब कि क्षेत्रफल मे वह आधे से कुछ ही अधिक था। पूर्वी जर्मनी अपेक्षाकृत काफी पीछे था। न वहाँ वह रग-ढग और जिन्दगी थी जो पश्चिमी जर्मनी मे थी। पश्चिमी जर्मनी की राजधानी इस समय बोन मे स्थित है। जो प्रथम ही से अपने विश्व विद्यालय के लिए प्रसिद्ध है। पर वहाँ वह चहल-पहल और शानोशौकत का वातावरण नहीं है जो बर्लिन मे था। पूर्वी जर्मनी की राजधानी बर्लिन ही के एक हिस्से मे है। वहाँ भी पूर्वी जर्मनी की भाँति चहल-पहल की कमी है। पश्चिमी बर्लिन की वर्तमान स्थिति बडी अजीब थी। वह अन्य प्रदेशो की भाँति एक प्रदेश माना जाता है। उसका अपना प्रदेश है। और पश्चिमी जर्मनी की पार्लिमेण्ट मे इसके सदस्य जाते थे, पर वे अन्य प्रदेशो के सदस्यो की भाँति वहाँ की कार्यवाही मे भाग नहीं ले सकते थे। न वोट दे सकते थे। उनकी स्थिति एक परामर्शदाता की थी। हकीकत यह थी कि पश्चिमी जर्मनी का एक भाग होते हुए भी वह पूर्णरूपेण उसमे नही मिल सका है। जर्मन पार्लियामेण्ट के बनाए कानून तभी बर्लिन पर लागू होते, जब बर्लिन की अपनी सभा भी उन्हे पास कर दे।

बर्लिन की भौगोलिक स्थिति एक द्वीप के समान थी। बर्लिन के चारो ओर पूर्वी-पश्चिमी जर्मनी से उसका सम्बन्ध हवाई मार्ग से ही अधिकतर था। पश्चिमी जर्मनी से बर्लिन जाने के लिए पूर्वी जर्मनी मे होकर जाना पडता था। जहाँ अनेक प्रतिबन्ध थे। बर्लिन के निवासियो की मजबूरियाँ भी अजीब थी। जहाँ दोनो हिस्से मिलते थे, वहाँ बडे-बडे बोर्ड लगे थे। तथा तारो की सीमा खिची थी। बोर्डो पर लिखा था कि आप एक देश से दूसरे देश मे प्रविष्ट हो रहे है। यहाँ कस्टम और पुलिस के अधिकारी भी इस कल्पना को सत्य प्रमाणित करने के लिए आने-जाने वालो की बडी जॉच-