अनोखी यात्रा
सात नवम्बर सन् १९५७ की शाम के वक्त मानव-इतिहास की एक सर्वथा अनूठी अभूतपूर्व घटना घटी, जिसका पता सारे संसार मे केवल एक बाईस वर्षीया अज्ञात युवती ही को लगा। इस समय सोवियत-जन-स्वातन्त्र्य की चालीसवीं वर्षगाठ नई दिल्ली के ट्रावनकोर भवन स्थित सोवियत दूतावास में मनाई जा रही थी। यह समारोह प्रति वर्ष धूमधाम से मनाया जाता है और नई दिल्ली का एक विशिष्ट भव्य समारोह माना जाता है। पर इस वर्ष इसमे निराली सरगर्मी थी। क्योंकि रूस ने अपने दो स्पूतनिक आकाश मे भेज कर संसार को आश्चर्यचकित कर दिया था। बिजली की सहस्रों रंगबिरंगी बत्तियों के प्रकाश से सारा भवन आलोकित था। उस समय भारत की राजनगरी दिल्ली के सौन्दर्य और वैभव का इत्र वहाँ एकत्रित था। नाना प्रकार के वेशभूषा धारी नर-नारियों से भवन का प्रशस्त प्रांगण परिपूर्ण था। भिन्न-भिन्न देश के भिन्न-भिन्न भाषाभाषी और विचार के स्त्री-पुरुषों की भीड़ वहाँ भरी थी। कोई कुछ खा-पी रहा था, कोई मित्र—
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