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खग्रास


इस प्रकार की योजनाओं पर कार्य चालू था। ५०० पौण्ड के कृत्रिम इस उपग्रह की योजना सेना ने बनाई थी, जो रेडियो या टैलिविजन द्वारा चित्र भी भेजने की क्षमता रखता था। सेना ने ऐसा इन्जन भी तैयार करने की योजना बनाई थी जो १० लाख पौण्ड का धक्का लगा सके। यह 'रेडस्टोन' इन्जन से १२ गुणा शक्तिशाली होगा। इस बीच कृत्रिम उपग्रह की स्थापना के लिये एक और जूपीटर-सी तैयार किया जा रहा था। और आशा थी कि यह एक और ऐसा कृत्रिम उपग्रह अन्तरिक्ष में स्थापित कर देगा, जिसमें भिन्न किस्म के यन्त्र होंगे।

पायोनियर

ग्यारह अक्टूबर को अमरीका ने फिर 'पायोनियर' नामक शक्तिशाली राकेट दो लाख इक्कीस हजार मील दूर चन्द्रलोक की ओर सफलतापूर्वक छोड़ा। परन्तु वह लक्ष्य भ्रष्ट होकर नष्ट हो गया। फिर भी उसने पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण से निकल कर अभूतपूर्व विजय प्राप्त की। चन्द्रलोक की परिक्रमा करने के लिए यह राकेट छोड़ा गया था, जो तीन भिन्न-भिन्न राकेटों को जोड़कर बनाया गया सर्वथा नवीन राकेट था। इनमें से एक राकेट तो इससे पूर्व कभी छोड़ा ही नहीं गया था। इस राकेट का वजन १०४,४०० पौण्ड था, तथा वह ८८.१ फुट लम्बा था। उसकी नासिका भाग में विभिन्न सम्वेदनशील उपकरणों से उक्त एक यन्त्रपुंज था, जो वजन में ८५ पौण्ड था। यह त्रिखण्डी राकेट के प्रथम खण्ड के रूप मे 'थोर' नामक प्रक्षेपणास्त्र था, जो मध्यम दूरी तक मार करने की क्षमता रखता था। इसका वजन १ लाख पौण्ड था तथा आकाश में पहुँचते ही उसने १ लाख ५० हजार पौण्ड धक्का देने की शक्ति उत्पन्न कर ली थी। वह ऊर्ध्वाकाश में अपने अग्रभाग में सन्नद्ध दोनों खण्डों और यन्त्रपुंज को लेकर तीव्र गति से आरम्भ में उड़ा। इसमें १५०० मील तक मार करने की क्षमता थी। किन्तु जुलाई ३ और २३ को यह ६,००० मील तक चला गया था।

त्रिखण्डी राकेट का दूसरा खण्ड 'केगार्ग' एक परिवर्तित संस्करण था, जो "बैगार्ड-उपग्रह" को पृथ्वी से २५०० मील दूर ऊर्ध्वाकाश में ले जा कर