को प्रविष्ट करा कर सम्पन्न किया गया। इस समस्त क्रिया में २४० सैकेण्ड लगे। इस समय तक कृत्रिम उपग्रह अधिकतम ऊँचाई तक पहुँच चुका था तथा उसकी दिशा भी कक्षा में अपने पथ की ओर संकेत करने लगी थी।
इस बीच जर्मनी में उत्पन्न राकेट-विशेषज्ञ डा॰ अर्नेस्ट स्टुलिगर भूमि पर चार विभिन्न विद्युदणु-विधियों से इसके मार्ग का परिचय प्राप्त कर रहे थें। वे इस प्रतीक्षा में थें कि दूसरे दौर के राकेटों को किस समय चला कर कृत्रिम उपग्रह को अपनी कक्षा में स्थापित किया जाय। सही वक्त का परिचय प्राप्त करने के लिए एक पेचीदा यन्त्र स्थापित था। ढोलनुमा बेलन से युक्त अग्र भाग जब १२ मील के लगभग और ऊपर पहुँच गया तथा पेचीदा यन्त्र सही दिशा का परिचय देने लगा, उन्होंने एक बटन दबाया।
उनके वैद्युतिक आदेश का पालन करते हुए ढोल के ११ छोटे राकेटों ने अपना कार्य प्रारम्भ कर दिया। ये 'रेडेस्टोन' राकेट के अग्र भाग से छूट कर चल निकले। ६ सैकेण्ड तक चलते रहे। इसके दो सैकेण्ड बाद ढोल के ३ अन्य राकेटों ने अपना कार्य शुरू किया। इन्होंने ढोल के अन्दर बन्द पहले के खाली ११ राकेटों को छोड़ दिया। अन्त में बीच का वह राकेट चला, जिसके साथ कृत्रिम उपग्रह जुड़ा हुआ था। शेष सब राकेटों को छोड़ कर यह अकेला १८,००० मील प्रति घण्टे से भी अधिक रफ्तार से चल पड़ा।
इस प्रकार यह कृत्रिम उपग्रह स्थापित हुआ। इस प्रकार यह प्रथम अमेरिकी उपग्रह कक्षा में स्थापित हो गया।
अब रूसी कृत्रिम उपग्रहों (स्पूतनिको) के सर्वथा विपरीत ‘एक्सप्लोरर' भूमध्य रेखा से ३४ अंश पर उसके साथ-साथ पृथ्वी के इर्द-गिर्द धूम रहा था। रूसी स्पूतनिक ध्रुवों के साथ-साथ पृथ्वी के इर्द-गिर्द घूमे थें। कृत्रिम उपग्रह का पथ पृथ्वी से अधिक से अधिक १७०० मील की दूरी पर तथा कम से कम २०० मील की दूरी पर था। एक चक्कर काटने में इसे ११४ मिनट लगते थे। यह पथ रूसी स्पूतनिको के पथ से अधिक दूरी पर तथा पूर्णतया 'सुरक्षित' था।