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हो गया है। हमें इस युग के अनुसार चलना है जिसमे हम है। हम विमान पर यात्रा करते और राडर का उपयोग करते हैं पर वास्तव मे हम अतीत युग मे ही हैं। और संयुक्त राष्ट्र संघ मे भी उसी रूप मे बात करते है।
"जिस गति से विश्व वर्तमान मे आगे बढ़ रहा है, उसे देखते हुए यही उचित है कि साहित्य मे प्राविधिक और वैज्ञानिक पुट अधिक रक्खा जाय।"
इसी विचार से मै अपना यह 'खग्रास' आपको भेंट करता हूँ।
ज्ञानधाम-प्रतिष्ठान। | -चतुरसेन |
दिल्ली-शहादरा। |