"यदि राकेट की गति बीस मील प्रति घण्टा अधिक या कम हो जाय, तो सम्भवतः कोई अन्तर न पड़ेगा।"
"क्या साधारण राकेट, जो चन्द्रलोक तक पहुँच जाय, मानव को वहाँ ले जा तथा ले आ सकता है?"
"नहीं। मानव को चन्द्रलोक में उतारने और उसको कुशलपूर्वक पृथ्वी तक वापस लाने के लिये बहुत शक्तिशाली राकेट चाहिए। जिसकी धकेल दस लाख या बीस लाख पौण्ड के बीच होनी चाहिए।"
"तब तो चन्द्रमा की खोज बहुत मँहगी है?"
"मेरा ख्याल है कि इसकी तैयारी के लिए अभी हमें कई वर्ष लग जाएँगे। और इसमें कोई दस अरब रुपया खर्च होगा। तब कहीं मानव चन्द्रमा तक पहुँचने और पृथ्वी पर वापस लौटने के लिए समर्थ होगा।"
"क्या हम इस सम्बन्ध में कुछ जान सके हैं कि चन्द्रमा पहिले पिघला हुआ था। क्या उसकी तहों में पृथ्वी की भाँति पानी भरा हुआ है? तथा चन्द्रमा का तल किस तरह का है?"
"इन सब बातों का पता तभी लग सकता है जब मानव चन्द्रलोक में पहुँच जायगा। पृथ्वी पर रहते इन प्रश्नों का उत्तर सम्भव नहीं है। सच बात तो यह है कि चन्द्रमा की खोज में हमें अन्तरिक्ष के अनेक रहस्यों का पता चला है। और चन्द्रलोक पर अधिकार करने से हमें ज्ञान का अतुल भण्डार प्राप्त होगा। खनिज का वहाँ इतना विशाल भण्डार है कि मानव को फिर और कहीं खनिज ढूँढने की आवश्यकता ही न रह जायगी।"
कैलीफोर्निया विश्व विद्यालय के डा॰ जोजेफ कायनिन ने कहा—"मित्रों, उपग्रह छोड़ने का यह उपक्रम मनुष्य द्वारा उठाया गया अत्यधिक साहसपूर्ण तथा सूझबूझ का कदम है। यह पृथ्वी के क्षेत्र में आगे बढ़कर विश्व की प्रत्येक जानकारी प्राप्त करने का प्रथम अध्याय है।"
जिस समय वार्सीलोना में उपर्युक्त अधिवेशन हो रहा था उसी समय न्यू मौक्सिको स्थित सैक्रमैण्टो शिखर वेधशाला के निर्देशक डा॰ जौन