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प्रतिनिधि श्री हेनरी केवट लाज ने व्योम के प्रति अमरीकी रवैये को व्यक्त किया था। तब तक किसी भी देश ने व्योम में उपग्रह नही छोड़े थे, न अन्तरमहाद्वीप प्रक्षेपणस्त्र ही सामने आये थे। श्री लाज ने कहा कि व्योम का उपयोग विशुद्ध वैज्ञानिक और शाति पूर्ण कार्यों के लिए होना चाहिए जिससे यह प्रगति मानव के लिए अभिशाप न बन कर वरदान बने। इसके वाद १२ जनवरी सन् १९५६ को अमेरिकी राष्ट्रपति आइजनहाबर ने तत्कालीन रूसी प्रधान मन्त्री बुलगानिन को यह सुझाव दिया था कि हम इस बात पर राजी हो जॉय कि व्योम का केवल शॉतिकालीन ही उपयोग किया जाय।

परन्तु आज सोवियत यूनियन और सयुक्त राज्य अमेरिका दोनो ही सैनिक उद्देश्यो से व्योम मे प्रक्षेपणास्त्रो का परीक्षण कर रहे है। अब ससार इतिहास की इस घड़ी में है जबकि इसी एक प्रश्न पर ससार के विनाश और विकास का फैसला होना है। इस सम्बन्ध मे भारत के प्रधान मन्त्री श्री जवाहरलाल के अनमोल शब्द हमारे कानो मे गूज रहे है जो उन्होने सर्व प्रथम रूसी स्पुतनिक के व्योम मे प्रविष्ट होने पर कहे थे—

"इस घटना से सिर्फ यह होगा कि लोग दूसरे ढग से सोचने को बाध्य होगे। मैं नहीं समझता कि इसका कोई प्रत्यक्ष या तुरन्त प्रभाव पड़ेगा। इससे यही होगा कि लोगो को यह महसूस करना पड़ेगा कि अब युद्ध-शस्त्री करण आदि की बात करना बेकार है जबकि यह युग इन सब चीजो से आगे बढ़ गया है। इस मानी मे हम कह सकते है—कि मानवता का तनाव कम करने की दिशा मे यह कुछ आगे बढ़ चुका है। यद्यपि दूसरे ढ़ग से। वैज्ञानिक और प्राविधिक प्रगति मानव बुद्धि की पहुंच से बहुत आगे बढ़ गई है। इस प्रगति और विज्ञान के युग मे हम लोगो के लिए सैनिक सधियो, शस्त्रीकरण की होड़, छोटे मोटे संघर्ष एव ऐसी अन्य बातों पर सोचना एक वाहियात सी बात प्रतीत होती है। हम बहुत पीछे पड़ गये है। यह तो ठीक वैसा ही मालूम होता है जैसे कोई अचानक आप से पाषाण युग के लोगो के तौर पर बात शुरू करदे। वैज्ञानिक और प्राविधिक प्रगति तथा मानव की विचार सीमा के बीच-मैं विशेष मानवो के बारे नहीं कहता-आज बहुत बड़ा अन्तर