(५) ग्रहों के मध्यवर्ती क्षेत्र में उद्जन के अणुओं और अयनों की घनता का निश्चय।
चिकित्सक का चिन्तन
जिस समय गत परिच्छेद में लिखित घटना घट रही थी, उस समय मास्को नगर के उपकूल पर एक लैबोरेटरी में रूस के प्रसिद्ध सर्जन व्लादी मिर रैमिखोव अपने कुछ साथियों के साथ अपने अत्यन्त गम्भीर आपरेशन में व्यस्त थें। दुनियाँ में कहाँ क्या हो रहा है, इन चिकित्सकों को इसकी परवाह न थी। सर्जन प्लादीमिर-रैमिखोव के अतिरिक्त वहाँ अमरीका के प्रसिद्ध सर्जन डेविड गुरेचिव, तथा नार्वे के सर्जन डाक्टर क्रिश्चियन कैपलिन उपस्थित थें।
रैमिखोव काफ़ी अर्से से जीवित शरीर में शस्त्र क्रिया द्वारा एक प्राणी के अंगों को दूसरे के शरीर में लगाने के सफल प्रयत्नों से ख्याति प्राप्त कर रहे थें।
आज एक सप्ताह पूर्व इन विदेशी मेहमानों के समक्ष उन्होंने एक जीवित कुत्ते को दूसरे कुत्ते का सिर लगा दिया था। कुत्ता न केवल जीवित था—वह अपने दोनों मुखों से खाना खा रहा था। एक दूसरे कुत्ते के अंग में उन्होंने एक अन्य कुत्ते का हृदय और फेफड़े लगा दिए थें। और अब वह कुत्ता भी जीवित था। तथा वह दो दिलों और एक अतिरिक्त फेफड़े के साथ भली प्रकार जी रहा था।
इन परीक्षणों को देखकर ये विदेशी डाक्टर प्रसन्नता और आश्चर्य प्रकट कर रहे थे। और डाक्टर रैमिखोव को बधाइयाँ दे रहे थें। वे कह रहे थें कि अब संसार के मनुष्यों को यह आशा दिला सकेंगे कि उनके खराब अंग बदले जा सकते हैं।
किन्तु यह सुनकर डाक्टर रेमिखोव ने खिन्न मुद्रा बना कर कहा—'मित्रों, हमारे इन प्रयत्नों से भला संसार के मनुष्यों का क्या भला हो सकता है, जब कि दूसरी ओर अणु बम और हाइड्रोजन बम उन असहाय