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खग्रास

खटोला बँधा था। इसने ७२ हजार फीट की उड़ान की जो उस समय तक सबसे ऊँची उड़ान थी। इस यान में एक टन वजनी वैज्ञानिक उपकरण थें जिनके द्वारा ७० हजार फुट की ऊँचाई पर जीवाणुओं की स्थिति तथा ऊपरी वायुमण्डल की परत, और प्रकाशक तथा वैद्युतिक परिस्थितियों का अध्ययन किया गया।

मनुष्ययुक्त गुब्बारें की उड़ान का यह रिकार्ड २१ वर्षोंं तक कायम रहा। इसके बाद सन् ५६-५७ में गुब्बारों तथा राकेट-विमानों द्वारा उड़ान करने वाले व्यक्ति और भी ऊँचाई पर पहुँचे। अब यह एक्सप्लोरर तृतीय, जिसका वजन केवल ३० पौंड था, १८ हजार मील प्रतिघण्टे की रफ्तार से पृथ्वी से १५ सौ मील के अन्तर पर भू-मण्डल के चक्कर लगा रहा था और महत्वपूर्ण सन्देश भेज रहा था। उसने सब से अधिक महत्व की सूचनाएँ ब्रह्माण्ड किरणों के सम्बन्ध में भेजी, जिनसे मनुष्य का पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र के सम्बन्ध में ज्ञान बढ़ा। यह उपग्रह गाइडर काउण्टर की सहायता से ब्रह्माण्ड किरणों की तीव्रता की पैमाइश कर रहा था। और ध्वनि तरङ्गो को ध्वनि ग्राहक केन्द्रों तक पृथ्वी पर भेज रहा था। आकाश मण्डल के ५० मील ऊपर से लेकर ४०० मील के ऊपर तक के भाग में, जिसे अयन मण्डल कहा जाता है, एक्सप्लोरर अपने अण्डाकार पथ पर निरन्तर घूम रहा था। और प्रत्येक दो घण्टे में पृथ्वी की परिक्रमा कर रहा था। वह प्रतिदिन बारह बार अयन मण्डल में प्रविष्ट होता और इसके रेडियों संकेत अयन मण्डल में से हो कर पृथ्वी पर आते थें जिनसे अयन मण्डल की रचना सम्बन्धी सूचनाएँ प्राप्त हो रही थी जिनसे निम्न तथ्यों पर प्रकाश पड़ रहा था—

(१) बाह्य आकाश मण्डल की घनता।

(२) अन्तर्महाद्वीपीय दूरियाँ और पृथ्वी की बनावट सम्बन्धी अन्य बातों की जानकारी।

(३) सूर्य के अल्ट्रा वायलेट किरण का दीर्घकालीग निरीक्षण।

(४) आकाश मण्डल में ब्रह्माण्ड विकिरण तथा अन्य विकिरणों की घनता तथा परिवर्तनों का अध्ययन।