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खग्रास

पहुँच सकता है। और सात मील प्रति सैकिण्ड की गति प्राप्त करने पर वह पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति से बाहर चला जायगा और वापस नहीं लौटेगा। क्योंकि गुरुत्वाकर्षण की गति इससे अधिक नहीं है।

गुरुत्वाकर्षण-शक्ति की तुलना रबर की पट्टी से की जा सकती है। इस पर जितना अधिक दबाब पड़ेगा, उतना ही अधिक वह खिंचती चली जायगी। लेकिन सात मील प्रति सैकिण्ड की गति के दबाब को गुरुत्वाकर्षण की शक्ति सहन नहीं कर सकती। और वह रबर की पट्टी टूट जायगी। परन्तु किसी पदार्थ के अन्तरिक्ष की कक्षा में बने रहने के लिए इस गुरुत्वाकर्षण-शक्ति को पार कर जाने की भी कोई आवश्यकता नहीं। क्योंकि सब राकेटो को ऊपर ही छोड़ा जाता है। इसलिए इन्हें वापस लौटना ही पड़ता है।

आप रबर की पट्टी में एक पत्थर बाँध कर घुमाइए। रबर की पट्टी को इतना खींचिए कि वह टूटने न पाए। साथ ही यह पट्टी इतनी खिंची होनी चाहिए कि सिरे पर बंधा हुआ पत्थर का टुकड़ा अपनी जगह पर वापस खिंच कर न आ सके। उस दशा में पट्टी इतना ही कर सकती है कि पत्थर को अपनी सीमा से बाहर न आने दे। गुरुत्वाकर्षण शक्ति का यह असर होगा कि उक्त पत्थर अथवा वैज्ञानिक उपकरणों से युक्त उपग्रह पृथ्वी की परिक्रमा अनन्तकाल तक करता रहेगा। जब तक कि कोई वस्तु उसे रोक न दे। या उसकी गति मन्द हो जाने पर गुरुत्वाकर्षण शक्ति के साथ इस प्रकार का सन्तुलन स्थापित करने के लिए यह आवश्यक है कि कृत्रिम उपग्रह को लेकर उड़ने वाला राकेट ४॥ मील प्रति सैकण्ड की गति से उसे कक्षा में डाल दे। इस प्रकार पृथ्वी से सैकड़ों मील दूर अन्तरिक्ष में उड़ान भरने तथा बिना किसी यान्त्रिक सहायता के पृथ्वी की परिक्रमा करने का रहस्य चक्कर काटने वाली वस्तु की गति में निहित है।"

अब आप राकेट के उड़ने का रहस्य भी सुनिए। राकेट की पूँछ से जब गैस अति प्रबल वेग से बाहर निकलती है तब राकेट उड़ता है, परन्तु गैसें हवा को पीछे धकेल कर राकेट को आगे नहीं बढ़ाती। बड़े राकेट की