यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१९२
खग्रास


"अवश्य देखिए। यह खण्ड ग्यारह सार्जेण्ट राकेटो का बाल्टीनुमा समूह है। जो ठोस ईंधन से चलाया जायगा।"

"और तीसरा खण्ड?" जेम्स एलन ने पूछा।

"वह भी ठोस राकेटो का बना है। तथा अन्तिम खण्ड एक ठोस राकेट का है। यह खण्ड उपग्रह के साथ अन्तरिक्ष में घूमेगा।"

“गत वर्ष जिस जुपीटर-सी का प्रयोग दो सौ मील ऊपर अन्तरिक्ष में जाने के लिए किया गया था, क्या इसमें उससे कुछ विशेषता है?"

"जी हाँ, उसके बाद जो इसमें परिवर्तन किया गया था वह यह था कि सेना के रैड स्टोन राकेट के ऊपर ठोस राकेटो के दो खण्ड जोड़ दिए थें। और उसे ६०० मील की ऊँचाई तक छोड़ा था। इस तीन खण्ड वाले राकेट को जुपीटर-सी कहा गया था। और इसका नाम 'सी' इसलिए पड़ा क्योंकि जुपीटर राकेट का प्रयोग इसके कुछ कम्पोनेण्टो का परीक्षण करने के लिए किया गया था।"

इतना कह कर डाक्टर वानब्रान बैठ गए। अब श्री जेम्स एलेन ने खड़े हो कर कहा—"मित्रों, यद्यपि रूस ने हम से प्रथम ही दो उपग्रह अन्तरिक्ष में स्थापित कर दिए हैं, परन्तु मैं विश्वास करता हूँ कि हमारा यह "एक्सप्लोरर (अल्का १९५८) संसार में एक चमत्कार की स्थापना करेगा। प्रथम तो यह कि वह पृथ्वी के इर्द-गिर्द घूम कर पृथ्वी के नकशे की भूलो को दुरुस्त करेगा। और अब मीलों के स्थान पर कुछ फुटो की ही गलती नकशे में रह जायगी। खास कर प्रशान्त क्षेत्र की भूगोल सम्बन्धी भूलों में पौन मील से ले कर पाँच सौ फुट तक की भूलें ही शेष रह जाएगी। और इसके बाद सारे संसार का नकशा इतना ठीक बन जायगा कि उसमे ३० फुट से अधिक कोई भूल शेष न रहेगी। इस समय तक नकशे तैयार करने के लिए हमें कीड़े की भाँति रेंग कर एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाना पड़ा हैं। अब इसके स्थान पर हमें ऐसी सूचनाएँ प्राप्त हो जाएँगी मानो हम अपनी आँखों ही से पृथ्वी को देख रहे हो। और इसका परिणाम यह होगा कि हम अन्तर्राष्ट्रीय दूरियों तथा उनके स्वरूप को बिल्कुल सही रूप में जान सकेंगे। इसके