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इस धरिणी के प्राणियो को सूर्य की घातक किरणो से लक्षावधि शताब्दियो से बचाता रहा है, और आज जिसका उपयोग मानव जीवन को नवयुगनवजीवन प्रदान कर सकता है, उसी व्योम मे ये राजनीति-धुरीण पुरुष मानवविनाश का तानाबाना बुन रहे है।

कुछ दिन पूर्व सोवियत सरकार की ओर से सयुक्त राष्ट्रसघ की एक 'व्योम सस्था' स्थापित करने का सुझाव दिया था। बातचीत के रुख से प्रतीत होता है कि अमरीका भी रूस से मिलकर समझौता करने को तैयार है और व्योम का केवल शातिकालीन उपयोग होना स्वाभाविक है। आज पृथ्वी से दो ढाई हजार मील की ऊँचाई पर उपग्रह घूमने लगे है। व्योम मे स्थायी स्टेशन स्थापित करने की दिशा में रातदिन काम हो रहा है। अमेरिका ने केनवराल अन्तरीप मे सैतीस करोड डालर की एक व्योम-स्टेशन-योजना बनाई है। ऐसी दशा मे मास्को और वाशिंगटन परस्पर के सहयोग से व्योम नियन्त्रण योजना बना सकते है। प्रसन्नता की बात है कि दो बरस बाद रूस ने उस प्रस्ताव का महत्व समझा है जिसे पहिले पहिल अमेरिका ने उठाया था। परन्तु रूस चाहता है कि अमेरिका विदेशो मे स्थापित अपने सारे अड्डे समाप्त कर दे। चार अक्टूबर को अपना पहिला उपग्रह व्योम मे पहुचा कर, और फिर अब चन्द्रमा के चारो ओर घूमने वाला छै टन का भारी उपग्रह छोडने की तैयारी करके रूस ने यह प्रमाणित कर दिया है कि वह व्योम मे होने वाली दौड मे अमेरिका से आगे है। ससार के सम्मुख यह भय तो है कि व्योम का उपयोग जबाबी हमले के रूप में भी किया जा सकता है। अब अमेरिका से उसके समस्त सैनिक अड्डो की समाप्ति की शर्त लगाने से प्रथम रूस को भी विश्व के सामने यह आश्वासन देना चाहिए कि यदि अमेरिका ने अपने अड्डे—जो उसने द्वितीय महायुद्ध के बाद 'कम्युनिष्ट बाढ' को रोकने के लिए स्थापित किए थे—उठाले तो क्या व्योम से आक्रमण का खतरा मिट जायगा? इसके लिए रूस को पश्चिमी देशो का विश्वास प्राप्त करना चाहिए। पहिले भी वह द्वितीय विश्व युद्ध मे पश्चिमी राष्ट्रो तथा अमेरिका के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर मित्र शक्ति की भॉति सफलतापूर्वक रह चुका है। अब से कोई दो बरस प्रथम जनवरी सन् ५७ मे अमरीकी