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खग्रास

से प्रतिरोध कर सकता है। यान के ६५ प्रतिशत भाग में विभिन्न अवयव झलाई प्रक्रिया द्वारा परस्पर सम्बद्ध किए गए हैं। जब कि ३५ प्रतिशत भाग में अवयव यान्त्रिक प्रक्रिया द्वारा परस्पर सम्बद्ध है। जिन स्थानों में पेच कसे गए है उनके छिद्र हाईड्रोलिक नालिकाओं से बन्द कर दिए गए है। ईंधन व्यवस्था के लिए उक्त दबाव वाले टक बनाए गए है।"

"तो क्या आप सचमुच इस यान द्वारा यह खतरनाक यात्रा करने पर आमादा ही है।"

"मेरी सब तैयारी हो चुकी है। केवल आपको मैं यह और बता देना चाहता हूँ कि मेरा यान पहिली मंजिल में ४० हजार फुट तक एक 'मातृ' विमान पर सवार होकर जायगा। वहाँ से वह ४०० मील प्रति घण्टे की गति से मुक्त आकाश में छोड़ दिया जायगा। यान में जितने दिग्दर्शक यन्त्र लगाए गए हैं, उतने किसी यान में नहीं लगाए थें। इन यन्त्रों की आवश्यकता इसलिए पड़ी कि शून्याकाश में दिशा का ज्ञान बना रहे जो आसान नहीं है। एक बात और है कि बात गति मापक और ऊंचाई मापक यन्त्र वहाँ काम नहीं दे सकते है। ऐसी दशा में चालक को इन्हीं यन्त्रों के सहारे यह जानकारी हो सकती है कि वह अपने मूल स्थान से अकेला शून्याकाश में अब कहाँ पर है?"

इतना कह कर डाक्टर स्काट क्रौसफील्ड व्यस्त भाव से उठ बैठे। यान अन्तरिक्ष यात्रा के लिए सर्वथा तैयार था। डेढ़ सौ के लगभग विशिष्ट कर्मचारी इसकी तैयारो में संलग्न थें। डाक्टर स्काट अपने नियत आसन पर बैठ गए। सहायकों ने उनके सिर पर एक धातु की पट्टी मजबूती से बाँधी। अब डाक्टर ने हाथ हिला कर संकेत किया और यान भयानक गर्जन के साथ अन्तरिक्ष की ओर उड़ चला। ४० हजार फुट की पहिली उड़ान यान ने सकुशल समाप्त कर ली। ऊपर से डाक्टर स्काट के सब सन्देश ठीक-ठीक सुने गए।

अब उन्होंने एक खटका दबाया, और यान भीषण गति से ४०० मील प्रति घण्टा की रफ्तार से ऊर्ध्वाकाश में घुसने लगा। इस समय डाक्टर स्काट एक ओर अत्यन्त सतर्कता और तत्परता से यान के नियन्त्रण और